ख़ुद के तस्वीर से नवाजों ना
एक बार ही सही
ख़ुद की तस्वीर लगा दो ना
अजीब कस्मकस है कुछ बोलती नही
छिपाए बैठी है राज़ कुछ खोलती नही
आतुर है सुनने को कान तरसती हैं
कुछ तो बोल दो धड़कन थमने को कहती हैं
वो शायरी बन गई थी मेरे लिए
पूरा तस्वीर उकेर दिया था एक शायरी पर
और एक झलक देखने को आतुर ये दिल
पूरी रात जाग दिया था एक तस्वीर को लेकर
ख़ामोश रात डरावना मंज़र
कोई कुछ बोला ही नहीं
रात भर जागता रहा
मसला शांत कर दिया दूसरी तस्वीर दिखाकर
अपना कहने को बेकरार दिल
तारीफ़ के पुलें बांधता है
फिर भी कोई प्रतिक्रिया नहीं
इंतजार में आशिक़ पूरी रात जागता है
#बेढँगा_कलमकार
✍ इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.)