बुधवार, 14 जुलाई 2021

हे ख़ुदा ! यही एक आरजू मेरी भी पूरी कर दे

इश्क लिखने का कोई शौक नहीं था 

लिखता था क्यूं कि उससे इश्क था 

कोई ज़ोर जबरदस्ती थोड़े है उससे 

जब उसे मुझसे कोई इश्क नहीं था


मैं अंधेरे को रोशनी मानकर जी लूंगा 

पर वो उजाले में ही जीए

मैं भले नाकाम निठल्ला ही रहूं 

पर दुआ है ख़ुदा से कि वो हर बुलंदी को छुए


उसकी हर आरज़ू पूरी हो ख्वाहिशें हैं मेरी 

उसे वो सारी कामयाबी मिले 

जिसके है ख़्वाब पिरोए 

और जहां भी रहे वो खुश रहे 

हे ख़ुदा ! यही एक आरजू मेरी भी पूरी कर दे


#बेढँगा_कलमकार

✍  इन्द्र कुमार  (इ.वि.वि.)

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