एक प्यारा गांव था मेरा
शहर में आकर भूलता जा रहा हूं
देखकर छोरियां शहर की
अपना घर भूलता जा रहा हूं
रूकर देखा आइना साफ करके
नजर आता नही वो चेहरा
जो लेकर आया था अपने गांव से
सब कुछ लुटा बैठा हूं
वो गांव की नर्मियां
अब कुछ नही बचा है
सिवाय नाम के
नाम भी बदनाम हैं सारे शहर में
घूमता रहता हूं न घर हैं न बार है
चौराहे के बूथ आज भी तैयार है
बरसाने छड़ी बदन आज भी लाल है
ठिकाना नहीं है कोई भी इस जिंदगी की
निगलने के लिए जिंदगी तैयार है
रहकर शहर में रहबर
गुमनाम आज वो भी बदनाम है
#बेढँगा_कलमकार
✍ इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
शुक्रिया 💗