दो पल गुजर जाए
उनकी बाहों में ऐसी दुआ करता है
आज मुस्कुरा कर पलकें झुका कर चली गई
अब पूछता है क्या कह गईं वो
देखना बेइंतेहा मोहब्बत सा
रोदन उसका बिछड़े हिरण सा
लगता है देखकर सबको ऐसा
कि ढाती है वो कोई कहर सा
अंजाम नही पता होगा क्या
सूरत है कोई ख़ूबसूरत सा
ए महफिल न कर कोई मुश्किल
मरता है कोई बदसूरत सा
नींद में कोई खलल डाली है
बेअसर पर असर डाली है
शहर छोड़ कर घर क्या आया
पहर भर में कहर ढा दी है
तन्हाई है कटती नहीं
जाम बेअसर हैं चढ़ती नहीं
करती है बात अब हर रोज़
मोहब्बत है पर वो कहती नहीं
#बेढँगा_कलमकार ✍ इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.)
लगता है समीक्षा कर चुके😇
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