जितनी जाएं तू दूर
उतनी ही पास हूं
तेरे हक के कतरे कतरे में
छुपा एक ऐसा राज़ हूं
कि कर बतर तू
हर कल में आज हूं
तू छुपाएं भले दुनियां से
पता है हर सांस में हूं
भोली बन इतराती हो
कैसी लगन लगा दी हो
भूलूं कैसे उन यादों को
जो साथ बिता दी हो
जरुरत नहीं है कैसे बोलो
डाली से कलियां हटा दी हो
निर्झर हो गई है डाली बोलो
अंजान कहर सा ढा दी हो
#बेढँगा_कलमकार
✍ इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.)
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