शुक्रवार, 4 मार्च 2022

अंजान कहर सा ढा दी हो

जितनी जाएं तू दूर 

उतनी ही पास हूं 

तेरे हक के कतरे कतरे में 

छुपा एक ऐसा राज़ हूं 


कि कर बतर तू  

हर कल में आज हूं 

तू छुपाएं भले दुनियां से 

पता है हर सांस में हूं 


भोली बन इतराती हो

कैसी लगन लगा दी हो

भूलूं कैसे उन यादों को

जो साथ बिता दी हो 


जरुरत नहीं है कैसे बोलो

डाली से कलियां हटा दी हो 

निर्झर हो गई है डाली बोलो

अंजान कहर सा ढा दी हो


#बेढँगा_कलमकार 

✍ इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.)

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