अब इश्क नहीं, कुछ और भी लिखना है
मंजिल कि तलाश में , घर से निकला हूं
लोगों का क्या , उन्हें जो कहना है कहें
मैं तो अब खायी है कसम ,
तो उस सपने को पूरा करना है
मेरे लिए क्या दुआ , क्या किस्मत
बस हाथों का सहारा है उनके
जो जन्म दे , पाल-पोष कर
इतनी शिद्दत से साँचे में ढाला है
मेरे पास बस मेहनत है जो हाथ में मेरे
दृढ़संकल्प , दृढ़विश्वास है ताज़ ये मेरे
आंधियों से लड़कर एक दीपक जलाना है
उजाले को क़ायम कर इतिहास बनाना है
#बेढँगा_कलमकार
✍ इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.)
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