रविवार, 18 जुलाई 2021

उजाले को क़ायम कर इतिहास बनाना है

अब इश्क नहीं, कुछ और भी लिखना है 

मंजिल कि तलाश में , घर से निकला हूं

लोगों का क्या , उन्हें जो कहना है कहें 

मैं तो अब खायी है कसम , 

तो उस सपने को पूरा करना है 


मेरे लिए क्या दुआ , क्या किस्मत 

बस हाथों का सहारा है उनके 

जो जन्म दे , पाल-पोष कर 

इतनी शिद्दत से साँचे में ढाला है 


मेरे पास बस मेहनत है जो हाथ में मेरे 

दृढ़संकल्प , दृढ़विश्वास है ताज़ ये मेरे 

आंधियों से लड़कर एक दीपक जलाना है 

उजाले को क़ायम कर इतिहास बनाना है


#बेढँगा_कलमकार

✍  इन्द्र कुमार  (इ.वि.वि.)

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