कुछ लिखने को दिल किया
तो लिख दिया
मुझे इश्क बेहतर लगा तो
इश्क कर लिया
उसे अच्छा नहीं लगा
तो बेशक इंकार कर देती
मैं शिकायत भी न करता
और कोई दबाव भी न देता
चाहे भले सरे बाजार
या फिर मुझे बर्बाद कर देती
पर
उसे रात में नींद नहीं आई
तब पता चला कि
उसे किसी चीज़ कि जरूरत थी
और फ़िर बाकायदा अख़बार में छप गई
कि वो चीज़ है इश्क
जो उसे भी जरूरत थी
पर मै क्या जानू
कि क्यूं रात भर बातें
वो करती रही
और समय का परवाह भी न की और समय बर्बाद करती रही
और रूठ भी गई
बोलना भी बन्द कर दी
फ़िर पुनः अख़बार में छप गई
कि वो ख़्वाब में आई मात्र एक शायरी थी
#बेढँगा_कलमकार
✍ इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.)
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