अब कलम-ए-इश्क कुछ लिखती नहीं
कोई तो तकलीफ़ है जो चलती नहीं
उसके रूठने कि ख़बर सुर्खियों में हैं
हा फ़िर क्यों
अभी तक ये ख़बर अख़बार में छपती नहीं
मैं तो चाहता था जानना पर वो बोलती नहीं
दर्द गहरी है तभी कलम-ए-इश्क उकेरती नहीं
जो चार दिन पहले दिन-रात कान घोलती थी
हा फ़िर क्यों
आज दिल है जख्मी वो राज़ खोलती नहीं
#बेढँगा_कलमकार
✍ इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.)
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