मंगलवार, 6 जुलाई 2021

जब्त-ए-मुस्कुराहट

मैं रोशनी को सज़ा कर रखता था कभी 
पर आज अंधियारों ने जब्त कर रखा है 
बादल के बरसने का रुख जानना था 
जो आज मुस्कुराहटों को जब्त कर रखा है

कमबख्त अभी तक अंजान थे जो 
वो मेरे हक कि बात करते हैं 
और कई अरसों से मुस्कुराए नहीं थे जो
वो भी मुस्कुराने कि बात करते हैं

मालूल है क्या , हल उसका 
जो अभी तक कोई सुझाया नहीं 
और क्या बात खटक रही है मन में उसके 
जो अभी तक मुस्कुराया नहीं

#बेढँगा_कलमकार
✍ इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.)

2 टिप्‍पणियां:

शुक्रिया 💗

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