गुरुवार, 5 अगस्त 2021

झूठा ही सही , पर एक बार इकरार तो कर लेती

मेरी मोहब्बत को एक बार पहचान तो लेती 

इश्क बेपनाह था , एक बार मान तो लेती 

मै शायर बन बंजारा बन गया था 

झूठा ही सही , पर एक बार इकरार तो कर लेती


मंजिल पता था , और मैं डरता रहा 

राह पता था , और मैं ठहरता रहा 

पता नहीं कैसा नशा था , इश्क का 

कि इश्क सामने था , और मैं भटकता रहा


आज मौसम ठंडा हैं , फिर भी गर्म है बदन 

हुआ क्या है, कोई तो बताएं

इश्क हुआ हो तो क्यों है भरम

कोई शायर हो तो आज इश्क जताएं


#बेढँगा_कलमकार

✍  इन्द्र कुमार  (इ.वि.वि.)

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