मेरी मोहब्बत को एक बार पहचान तो लेती
इश्क बेपनाह था , एक बार मान तो लेती
मै शायर बन बंजारा बन गया था
झूठा ही सही , पर एक बार इकरार तो कर लेती
मंजिल पता था , और मैं डरता रहा
राह पता था , और मैं ठहरता रहा
पता नहीं कैसा नशा था , इश्क का
कि इश्क सामने था , और मैं भटकता रहा
आज मौसम ठंडा हैं , फिर भी गर्म है बदन
हुआ क्या है, कोई तो बताएं
इश्क हुआ हो तो क्यों है भरम
कोई शायर हो तो आज इश्क जताएं
#बेढँगा_कलमकार
✍ इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.)
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