शुक्रवार, 17 सितंबर 2021

नहीं हैं खिड़की बस है एक दरवाजा वो भी बंद है

मैं तन मन सब तुझे दे दू 

तो क्या करोगी

मैं टूट जाऊ मर जाऊ 

तो क्या करोगी 

बस ख्वायिस रहेगी आप से हमें 

अपनी सीने से एक बार लगा लेना हमें 


दिल के गहराईयों में झांक कर देखो 

साफ सब कुछ नज़र आएगा 


अगर नज़र में है खोट 


मैं दिखाने बैठ गया और मर भी जाऊ 

तो तुम्हें नज़र नहीं आएगा


नहीं मानता कसम को  

सब भरम हैं 

गुम हूं एक कमरे में 

नहीं हैं खिड़की 

बस है एक दरवाजा वो भी बंद है


#बेढँगा_कलमकार

✍  इन्द्र कुमार  (इ.वि.वि.)

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