शनिवार, 2 अप्रैल 2022

अजीब मोहब्बत है।। हर सफ़र में नज़र, आ जाती हो तुम

ये लगन कैसी लगा दी हो तुम

भुल जाता हूं फिर भी

देखते ही, याद आ जाती हो तुम 


तेरे हाथों के कंगन चूड़ियां सुनाई देती है

अजीब मोहब्बत है 

हर सफ़र में नज़र, आ जाती हो तुम


नदी का किनारा, घाट हो तुम

नाव खेवयिया, बादल की बरसात हो तुम


झरने की तरह, कलकल आवाज़ हो तुम

अजीब मोहब्बत है

हर सफ़र में नज़र, आ जाती हो तुम


भुवन चन्द्र चांदनी, रात सा हो तुम

गजनी की दिमाक, सा हो तुम

भुल जाउ फिर भी, याद आ जाती हो तुम 


दर दरिया दिल की, मिशाल हो तुम

अजीब मोहब्बत है

हर सफ़र में नज़र, आ जाती हो तुम 


मेरे घर की आलीशान, दीवार हो तुम

दिल छू लेने वाली 

खबर की, अखबार हो तुम


मेरे नजरों से, टकराने वाली तकरार हो तुम

अजीब मोहब्बत है

हर सफ़र में नज़र, जाती हो तुम 


गंभीर शब्द, तीक्ष्ण बाणों सा

आघात हो तुम

बागो की वादी, वीणा की सुरीली

तान हो तुम

हर मनु को शब्द विहीन कर दो


जीती बाजी की, ऐसी तास हो तुम

अजीब मोहब्बत है

हर सफ़र में नज़र, आ जाती हो तुम


पूरी लिख दूं, तुम्हे कैसे 

बिहारी की गहराई, दोहे की शान हो तुम

मां पिता की प्रेम, भाई बहन की स्नेह हो तुम


मेरे रुप की रंगत, चेहरे की मुस्कान हो तुम

अजीब मोहब्बत है

हर सफ़र में नज़र, आ जाती हो तुम ।।


#बेढँगा_कलमकार 

✍ इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.)

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