बात कुछ नही मोहब्बत का था
कुछ बोला नहीं गुनगुना कर चला गया
रात काली रही पूरी रात भर
जब तक सुबह का सूरज नही आ गया ।।
जुबान लड़ खड़ाई
और कुछ बोल नहीं पाया
वो शर्मा कर चली गई
दिल का राज़ घोल नहीं पाया
उनकी अदा मुझे भा गई
मैं शांत देखता रहा, वों सब कुछ बड़ बड़ा गईं
कमबख्त इश्क ही रहा होगा
तभी उनकी गालियां भी पसंद आ गई ।।
#बेढँगा_कलमकार
✍ इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.)
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