इल्जाम था, कातिल होने का, हम पे
कुछ नहीं, बस यही, समझा रहा था उनसे
कैसे कहूं कि, तुम ख्वाइश हो मेरी
जेल जा रहा हूं अभी, यही बतला रहा था उनसे
जिंदगी भर साथ निभाने को, कह रही थी मुझसे
रात के ख़्वाब में, उम्मीद उमड़ रही थी उनके
अभी हवालात का, हवा खा कर ही आया था
उम्मीद कुछ ज्यादा नही, कर रही थी मुझसे
परोल पर आया था, डर फिर था जाने का
इंतजार करती आरक्षी, कोर्ट के इशारे का
पर भरोसा था उनके, साथ निभाने का
भले खबर नहीं था, उनके छोड़ जाने का
शक बेशक था, उनके रुख करने का
पकड़ ली थी हाथ, छोड़ मुझे, गैरों का
अरे कोई ख़बर, जाओ, दे आओ उन्हे भी
भौंरे भी तलाश सकते हैं, इलाका फूलों का
#बेढँगा_कलमकार
✍ इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.)
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