शनिवार, 9 अप्रैल 2022

हाय_रे_इश्क 2.0

मोहब्बत के लिए तरस गया था वो

शहर की गलियों में 

अपना महबूब खोजा करता था वो


बड़ी दुःख भरी कहानी है उसकी 

सुबह शाम रोया करता था वो


जब कोई लड़की गुजरती थी रास्ते से

नींद खुल जाती थी उसकी आहट से


शाम को बैठ पुल पे याद में उसके

बेशुमार रम पिया करता था वो


भरोसा था उसे, उसके लौट आने का 

खबर मिलती नही कोई अखबार से 


जग रात भर, चल सड़क पर वो

सबके नजर में निशाचर हो गया था वो


हया समझ इंतजार करता था वो

मुस्कुरा टाल दिया करता था वो


जख्म समेटे इतना तनहाई का 

सबके नजरों में खुद बेहया हो गया था वो


#बेढँगा_कलमकार

✍ इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.)

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