सोमवार, 4 अप्रैल 2022

मोहब्बत की पहली, ख्वाइश हो तुम ।। यूं छोड़ देंगे, थोड़े नुमाइश हो तुम

मोहब्बत की पहली, ख्वाइश हो तुम

यूं छोड़ देंगे, थोड़े नुमाइश हो तुम


मेरे जर्रे जर्रे में बसी हो 

सीप की मोती, गोता का शाही हो तुम


दुआ का असर है, चाहत का चाह हो तुम

बेगुनाह की गवाही, शाह की साख हो तुम


आसमा से उतर कर आई 

मांगी दुआ की, फ़रियाद हो तुम


कलम लिख न पाई, इतनी ख़ास हो तुम

सरकंडे की स्याही, कलम की दवात हो तुम


अविरल बहने वाली धारा 

पथिक की प्यास, थकन में स्वास हो तुम


गंगा की रेत, आगरा की ताज हो तुम

झूठ की पर्दा, इंसाफ़ की विश्वास हो तुम


गुल की खुशबू, भौरे की प्यास हो 

कांटों बीच पली, एक ऐसी गुलाब हो तुम


#बेढँगा_कलमकार 

✍ इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.)

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