भूला भटका सा लगता है
आश लगाए बैठा है
न जाने कब क्षण आएगा
इंतजार में पागल बैठा है
भीगे हैं पलकें, सूखे होठ उसके
होंगे गीले, सूखेंगे क्या पलकें
कब गुजरेगा, निरस पतझड़
सुनने को व्याकुल, कूकेगी क्या कोयल
आयेगी राधा, क्या सुन बासुरी
वक्त बहुत बीत गया है, बोल सूदन
प्रेम रंगत, निखरते नही हैं
घड़ा भ्रम का, फूटेगा क्या सूदन
शब्द आखरी है, खत आखरी है
मेरी कलम, मेरे कल आखरी है
कूच कर जाएगी, कल चादर
लिपटे जो चादर में, चादर तू आखरी है
भूला भटका सा लगता है
आश लगाए बैठा है
न जाने कब क्षण आएगा
इंतजार में पागल बैठा है ।।
#बेढँगा_कलमकार
✍ इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.)
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