गुरुवार, 28 जुलाई 2022

मैं शाहजहाँ सा, वो मुमताज़ सी थी

वो बादलों में घिरी चांद सी थी 

मैं शाहजहाँ सा, वो मुमताज़ सी थी 


लिखी थी वो कभी तख्त पर

कि तुम कलम सा, मैं दवाद सी थी


बिछड़ना जरूरी था मिलने जैसा 

जितनी दिन थे, तुम ख़ास सी थी 


दुआ में मांगी मन्नत तो नही 

पर रात में आयी, तुम ख़्वाब सी थी


बादल सा मैं, वो चिकनी चांद सी 

मैं घटा बन बरसता,

वो कड़क बिजली की प्रकाश थी


मैं तो कभी कभी आता, 

पर वो हर रात की रानी चांद थी


#बेढँगा_कलमकार 

✍ इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.)

गुरुवार, 7 जुलाई 2022

कोई है खूबसूरत सी एक दिन देखा था

किसी की आखें नसीली थी 

चेहरे पर परदा था


कोई है खूबसूरत सी 

एक दिन देखा था 


मांगा था दुआ में

खुदा ने दुआ कबूला था 


कोई शर्त न था 

जैसी थी वैसे ही चाहा था


मुकम्मल बातें, मुलाकाते होती 

ऐसा सबको लगता था


पर सारी बाते जो थी 

मात्र रात्रि की एक सपना था


#बेढँगा_कलमकार 

✍ इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.)

थी आवाज भर, जो कभी सुकून

सजीव तस्वीर, वो नज़र, काजल, बिंदियां  कमाल की थी मुस्कुराता चेहरा, छिपी उसमें गुनेहगार भी थी दी थी जख्म, दर्द नहीं  कराह थी, शिथिल पड़े  एहस...