थे बहुत शब्द तो, क्या यही कहना था
जब नहीं आता था, तो क्यूँ बोलना था
तेरे नजर मे खोट थे ,मालुम था तुझे
तो संस्कार पर ही ,क्यूँ बोलने चला था
नारी का वजन को तौलने चला था,
डरा भी नहीं तु, जो कहने चला था
कठोर थे लहजे तेरे , नारियों पर
समुन्दर भी सुन, ठहरा हुआ था
तेरे नजर मे खोट थे ,मालुम था तुझे
तो संस्कार पर ही , क्यूँ बोलने चला था
तेरा विचार कितनो को भाया,
वक्त का चक्र बता ही देगा
सम्हल कर चल थोड़ा ,आगे और भी चलना
बदल दे खुद को, नियती का क्या
चार दिन ही तो हुये थे, थोड़ा तो ठहरता
तेरे नजर मे खोट थे ,मालुम था तुझे
तो संस्कार पर ही , क्यूँ बोलने चला था
मर्जी उनकी, स्वतन्त्रता है
पहनना है जो उन्हे , पहनने दे
वक्त क्यू जाया करता है, इन गुठनो के पिछे
देखना ही था तो कुछ और देखते,
क्या तुझे गुठने ही मिले थे
अगर मुझे नहीं है दिक्कत, उन्हे नहीं है दिक्कत
तो तुझे ही दिक्कत , क्यूँ मिले थे
तेरे नजर मे खोट थे ,मालुम था तुझे
तो संस्कार पर ही , क्यूँ बोलने चला था
तेरे एक वाणी मेरे लिए, कितना कष्टदायक होगा
है सर पर परीक्षा तुझे नहीं है पता क्या
है दीदी भी तैयार, नहीं पता था क्या
जब आये ही तुझे चार दिन हुआ था,
तो ऐसा बोलना जरुरी था क्या
तेरे नजर मे खोट थे ,मालुम था तुझे
तो संस्कार पर ही , क्यूँ बोलने चला था
#बेढँगा_कलमकार✍ इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.)
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