शुक्रवार, 28 मई 2021

किताबों में खोता जा रहा हूँ

 जिन्दगी बिगड़ती जा रही हैं 

बेकार होता जा रहा हूँ 

सोचा था, घूमूंगा सारा जहां पर 

पागलो की तरह अब सारा दिन

किताबो में खोता जा रहा हूँ 


मुस्किले हल होने की नाम नहीं लेती 

किताबो की कारवा थमने की नाम नहीं लेती 

सोचा था खत्म हो जायेगी परिंदे की ख्वाब 

पर उसके उड़ने की सिलसिला थमने का नाम नहीं लेती


#बेढँगा_कलमकार 

✍  इन्द्र कुमार  (इ.वि.वि.)

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