जिन्दगी बिगड़ती जा रही हैं
बेकार होता जा रहा हूँ
सोचा था, घूमूंगा सारा जहां पर
पागलो की तरह अब सारा दिन
किताबो में खोता जा रहा हूँ
मुस्किले हल होने की नाम नहीं लेती
किताबो की कारवा थमने की नाम नहीं लेती
सोचा था खत्म हो जायेगी परिंदे की ख्वाब
पर उसके उड़ने की सिलसिला थमने का नाम नहीं लेती
#बेढँगा_कलमकार
✍ इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.)
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