शुक्रवार, 28 मई 2021

अनसुलझी मोहब्बत कर बैठा

 मुकद्दर से बस एक ही सवाल है 

कि मोहब्बत का क्या जवाब है 

मुसलसल इश्क पुरा भी होता है क्या 

कि ये सिर्फ़ चलती फ़िरती दूकान है


कि उन्हें फ़क्र है इश्क पे 

जताने को कहते हैं 

लहर है समंदर मे 

उसे आने को कहते हैं 

कि मोहब्बत के दो-चार पन्ने 

पढ़ क्या लिये 

इश्क निभाने को कहते हैं


कि मेरा किरदार एक खलनायक का था 

पर मै हीरोगीरी कर बैठा.. 

जहाँ पहनने को था नफ़रतो का ताज 

वहाँ अनसुलझी मोहब्बत कर बैठा


#बेढँगा_कलमकार 

✍  इन्द्र कुमार  (इ.वि.वि.)

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