मुकद्दर से बस एक ही सवाल है
कि मोहब्बत का क्या जवाब है
मुसलसल इश्क पुरा भी होता है क्या
कि ये सिर्फ़ चलती फ़िरती दूकान है
कि उन्हें फ़क्र है इश्क पे
जताने को कहते हैं
लहर है समंदर मे
उसे आने को कहते हैं
कि मोहब्बत के दो-चार पन्ने
पढ़ क्या लिये
इश्क निभाने को कहते हैं
कि मेरा किरदार एक खलनायक का था
पर मै हीरोगीरी कर बैठा..
जहाँ पहनने को था नफ़रतो का ताज
वहाँ अनसुलझी मोहब्बत कर बैठा
#बेढँगा_कलमकार
✍ इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.)
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