यु तो मसलो को शिकस्त देना,
कद्रदान जैसा है
उन्होने देखा है क्या,
कि परिन्दे की उड़ान कैसा है
मगुरुरियत मे है खोये वे,
क्या मुनासिब है जिन्दगी
समुंदर की गहराई नापने को
ठानी है उन्होने,
पर देखा है क्या कि समुन्दर मे
उफ़ान कितना है
लब्बोलुआब है कि वो खुद को
अहंकार मे चूर देखते है
संसार पर हुकूमत अपना
सभी वस्तु में कोहिनूर देखते हैं
काफ़िल भी है हैरान अंजाम से
हस्र है जरा भी, न आराम देखते हैं
जब भी होते है नसे मे चूर वे
खुद मे नाज़ी हिटलर तानाशाह देखते हैं
#बेढँगा_कलमकार
✍ इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.)
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