सोमवार, 3 मई 2021

!!आरक्षी गुजरात की !!

 !!आरक्षी गुजरात की !!


बात हुआ, गिरफ़्तार हुआ 

कैमरे मे कैद , चित्कार हुआ

 था मसला, इजाजत की 

 नियम नही कैदे-कानून की 


कर सकती थी, पाश्चात्य भी 

कर न सकी आरक्षी गुजरात की


अन्दाज नयी , फ़रमान नयी 

कर सकती थी कार्य प्राणवायु की

चिंगारी है, जो होती प्रज्ज्वलित 

मोहताज हुयी, जो थी महिनों हालात की


कर सकती थी, पाश्चात्य भी 

कर न सकी आरक्षी गुजरात की


खान पान या फिर हो जातीय 

आर्थिक स्थिति और खड़ी संकट 

बनी किरकिरी या फिर डाली नजर

छुपा रही कमजोरी क्या हुकुमत


क्या नहीं है हुकुमत ,उस मुकाम पे 

जो भेद सके मसलो को ,अपनी तलवार से 

दो जुन की रोटी, डीग्रीधारी रोजगार की 

आर्थिक, राजनीतिक मसलो और शान की


कर सकती थी, पाश्चात्य भी 

कर न सकी आरक्षी गुजरात की


तो जहाँ होती कमजोर 

करती हुकुमत संस्था का प्रयोग 

फ़िर बात वही है आंदोलन 

जहाँ काम लेती आरक्षीगण 


तब होती उग्र समाज 

नयी सत्ता का करती तलाश 

होती चुनाव,  सही बाताते उसे 

करती चुनाव मे जो फ़तेह


बात अब संरक्षण की

कर न सकी हुकुमत भारत की 

कर सकती थी, पाश्चात्य भी 

कर न सकी आरक्षी गुजरात की


#बेढँगा_कलमकार ✍  इन्द्र कुमार  (इ.वि.वि.)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

शुक्रिया 💗

थी आवाज भर, जो कभी सुकून

सजीव तस्वीर, वो नज़र, काजल, बिंदियां  कमाल की थी मुस्कुराता चेहरा, छिपी उसमें गुनेहगार भी थी दी थी जख्म, दर्द नहीं  कराह थी, शिथिल पड़े  एहस...