शुक्रवार, 11 जून 2021

बात करती थी फिर भी इंकार करती थी

 किसी से बात करना बहुत अच्छा लगता है 

किसी के साथ हंसना बहुत अच्छा लगता है 

दोस्त हो या फिर हो वो प्यार , मोहब्बत 

बिछड़ जाए जो वो , जनाजे इश्क सा रोता है


बस कुछ बात ही तो हुई थी

दिल लगा था दिदार ही तो हुई थी

नहीं पता क्या हुई थी खता हमसे

बिछड़ गई वो हमसे , 

बात किए

सुबह से शाम ही तो हुई थी



जाने किस बात का घमंड करती थी 

मोहब्बत करती थी फिर भी नज़रंदाज़ करती थी 

दहलीज के हर बुलंदी को छु चुकी थी

बात करती थी फिर भी इंकार करती थी


#बेढँगा_कलमकार

✍ इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

शुक्रिया 💗

थी आवाज भर, जो कभी सुकून

सजीव तस्वीर, वो नज़र, काजल, बिंदियां  कमाल की थी मुस्कुराता चेहरा, छिपी उसमें गुनेहगार भी थी दी थी जख्म, दर्द नहीं  कराह थी, शिथिल पड़े  एहस...