शनिवार, 19 जून 2021

मेरे बापू

सोच रहा हूँ ये दुनिया 

क्यूँ इतनी सजा देती,  

जिन्हें ज्यादा चाहते है, 

उन्हें ही क्यूँ छिन लेती है.


मेरे बापू


आप स्मृति बन गये,  

मेरे चाहतो का 

कभी स्वप्न में 

आओ तो सही, 

अब मुश्किले 

और भी बढ़ गयी है 

आकर थोड़ा मुस्कुराओ तो सही,

 

कभी जो आप ने 

राह दिखाई थी 

ऊँचाइओ को पाने के  

अब तो राह और भी 

दुर्लभ हो चुके है, 

मुश्किले और भी 

बढ़ गयी है 

वहाँ पहुंच पाने के 


आप की वो बातें

हमे आज भी याद है 

मेरा सवाल पुछ्ना,  

आप का समझाना 

मेरा बहकना,  

आप का टोकना 

पर अब कौन बतायेगा, 

ये भी समझाओ तो सही 

आकर थोड़ा मुस्कुराओ तो सही 


बचपन मे आप का,

हमे साइकिल से 

स्कूल में पहुंचाना 

मै रोता था और 

आप का टाॅफ़िया 

देकर मनाना

क्यूँ छोड़ गये 

बिना ही मिले, 

बताओ तो सही 

आकर थोड़ा मुस्कुराओ तो सही 


आप का खेतों में जाना, 

सब्जियों के खेतों से 

घासो का निकालना 

कृषि कार्य मे रही 

त्रुटियों ,  को बताना 

अब कौन बतायेगा, 

समझाओ तो सही 

आकर थोड़ा मुस्कुराओ तो सही


#बेढँगा_कलमकार 

✍  इन्द्र कुमार  (इ.वि.वि.)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

शुक्रिया 💗

थी आवाज भर, जो कभी सुकून

सजीव तस्वीर, वो नज़र, काजल, बिंदियां  कमाल की थी मुस्कुराता चेहरा, छिपी उसमें गुनेहगार भी थी दी थी जख्म, दर्द नहीं  कराह थी, शिथिल पड़े  एहस...