ढल रहा है दिन जरा शाम आने दो
मिलूंगा उसी चांदनी चौक चौराहे पर जरा इंतजार कर
और
मोहब्बत की फरमाइश जो की थी तूने
पूरी कर दी जाएंगी , जरा चांदनी रात आने दो
कुछ पहलूवो पर राज़ है , पर्दा उठाना है
और खोए हैं जो अब तक स्वप्न में , उनको जगाना हैं
और ख्वाब जो है , कुछ कर दिखाने की
राह पर प्रशस्त कर उन्हें , हकीकत बनाना है
#बेढँगा_कलमकार
✍ इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.)
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