शुक्रवार, 18 मार्च 2022

खामोशी लिखूं तो सक न करना ।। किसी की आंखे आज भी ढूढती हैं।।

तरह तन की बदलती आवाज़

अदा की वो पूरी सालार

कह गुजर गए कई लोग

पूछते पूछते उसकी हाल 


फिक्र कर रहे हैं इतनी 

सहज कह देते हैं बड़ी-2 बात

न पूछ मुझसे मेरे रहबर 

मुुश्किल भरे सवाल


जिक्र नहीं करता जिसकी

उम्र की बीतती कैसे रात

बावली हो गई थी नज़रे 

मुकम्मल नही थी मुलाकात


खामोशी लिखूं तो सक न करना 

किसी की आंखे आज भी ढूढती हैं

बीत गए कई साल क्षण क्षण में

पर शर्म से पर्दा वो आज़ भी करती है


महज़ बात नहीं , है हकीकत

कैसे लिख दूं , बादल के बूंदों को

कितना तड़पा होगा वो भौंरा 

बिछड़ क्यारी के उन फूलों से 


तकलीफ़ हुआ होगा 

जिक्र जब कोई करता होगा 

दिन तो बीत जाते होंगे उसके भी 

पर रात उसके भी कैसे बीतता होगा


#बेढँगा_कलमकार

✍ इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.)

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