आसान न समझ मुकद्दर तू
मुुश्किल भरा पथ है इश्क
बड़ी जाती हुई है साथ इसके
कह गए कविराज .......
अर्थ निकालते हैं अनर्थ
सहज सरल बात है जिसके
समझ नहीं, घात लगाए बैठे हैं
गरल उगलते है रात-दिन
ध्यान भंग धन्य हो प्रभु
भ्रम टूटा टूटे हैं हम
तोड़ दिल को टुकड़ों में
लूटा गया, लुटे हैं हम
गहन गर्म गरमाहट मात्र
दानिश दहल ईजा मात्र
गुजर राह रोही को
रजनी में भी नही राहत मात्र
#बेढँगा_कलमकार
✍ इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.)
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शुक्रिया 💗