गुरुवार, 14 अप्रैल 2022

मेरे सनम

कोई गुस्से में भी मुस्कुराता है

कोई चेहरा है बहुत भाता है


कितना करीब है समझ नहीं आता

नफरत करता हैं फिर भी मनाता है


दिल की सुकून है वो

किसी हवेली की जुनून है वो


वक्त नही हैं मोहब्बते एहतराम का

कसम से बड़ा मसरूफ है वो


उम्मीदे हैं उससे बहुत

हाल-ए-दिल सुनाना है


जुगनू हैं मेरे दिल का 

मोहब्बत का दीप जलाना है


फकत कोई वक्त निकाल लो 

मेरे लिए

सनम जी रही हूं सिर्फ तेरे लिए


मेरी आखें तरस जाती हैं 

सुकून-ए-दिल के लिए


नाराज़ क्यूं होते हो

आ जाओ शहर मिलने के लिए


#बेढँगा_कलमकार 

✍ इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.)

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