कोई गुस्से में भी मुस्कुराता है
कोई चेहरा है बहुत भाता है
कितना करीब है समझ नहीं आता
नफरत करता हैं फिर भी मनाता है
दिल की सुकून है वो
किसी हवेली की जुनून है वो
वक्त नही हैं मोहब्बते एहतराम का
कसम से बड़ा मसरूफ है वो
उम्मीदे हैं उससे बहुत
हाल-ए-दिल सुनाना है
जुगनू हैं मेरे दिल का
मोहब्बत का दीप जलाना है
फकत कोई वक्त निकाल लो
मेरे लिए
सनम जी रही हूं सिर्फ तेरे लिए
मेरी आखें तरस जाती हैं
सुकून-ए-दिल के लिए
नाराज़ क्यूं होते हो
आ जाओ शहर मिलने के लिए
#बेढँगा_कलमकार
✍ इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
शुक्रिया 💗