जब कभी शायरी की एक लाइन नही बनती
तब दिल को और जलाना पड़ता है
मोहब्बत को याद कर करके
आंखो से आंसू बहाना पड़ता है
याद याद जब आ जाए याद भारी पड़ता है
दिल आखों के नमी से पसीझ उठता है
बड़ी मुश्किल होता है समझाना
जब भी दिल रो पड़ता है
आंख की आसूं कलम की रफ्तार होती है
खाली दिखती पर भरी दुकान होती है
कभी कभी पढ़ना मुश्किल पड़ता है
सामने खुली भले क़िताब होती है
पन्ने के प्रत्येक शायरी में चेहरा स्पष्ट होता है
सोचना नही पड़ता सब याद होता है
करुणा लिखना आसान नहीं
भीगे शब्द से नम पन्ना जान पड़ता है
कोई चेहरा याद करके रोता है
कई भूले बिसरे पल सब जाग पड़ता है
#बेढँगा_कलमकार
✍ इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
शुक्रिया 💗