कोई कत्ल करने पर उतारू हैं
मेरे रक्त का पीपासु है
देखा नही जाता मेरी बरकत
मेरा घर जलाने पर उतारू है
रेश में नज़र नही आता
सोच बदलना नही चाहता
बड़ी ऊंची ख्वाईश रखता है खुद
पर दूसरों के घर देखा नही जाता
कमी नहीं है उसे भी किसी चीज़ की
कमी है तो मात्र एक सद्बुद्धि की
दुखी नही हैं स्वयं के दुख से
दूसरो के सुख से दुखी नजर आता
हाल ए है दिले जिंदगी
कोई कब तक आगोश में बैठेगा
दूसरो के जुल्म सहेगा सदा
ख़ुद कब तक ख़ामोश बैठेगा
#बेढँगा_कलमकार
✍ इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.)
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