मुतलक किसी की आखें ढूंढती है बहुत
बैठ प्रेम वाटिका में, काटती है दिन बहुत
बड़ी उतावली रहती है जानने में
कोई एक लड़का था, अब रहता है किधर
नज़र से इश्क, कोई है जिसकी नही खबर
कभी टकराती है नजर, तो बोलता नही ठहर
पूछती है मेरे दोस्तों से
क्या कोई लड़का कभी चर्चा करता हैं मुझ पर
एक ही शहर में रहकर दूर है बहुत
दिल करता है मिलने को, पर वो आता नही नज़र
मोहब्बत है मुझे, उससे
पर घबड़ाती हूं, कि कैसे कहूं जाकर
कहती है, मेरी बेबसी को समझ लो तुम
इंतजार करती हूं, करती रहूंगी उम्र भर
पर तुम भूल गए हो मुझको
या फिर दिल लगा लिए हो और कही पर
#बेढँगा_कलमकार
✍ इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.)
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