शनिवार, 21 मई 2022

मैं कैसे कहूं ईद मैं, चांद तू है मेरी

सुबह कलियां खिलते हुए

मुरझा जाती है दिन ढलते ढलते


उदास है जिंदगी एक आश के लिए

आ जाओ मिलने तो सही

बुढ़ापा आ रहा है उम्र बढ़ते बढ़ते


मालूम है तुम्हे हर पल की कदर

ठहर कर अब देर न कर


इंतजार में कोई बैठा है मुतलक

दिन ढल रहा है अंधेर न कर


दुआ में मांगी हर चीज़ मिल गई

एक तू जो दूर है


बात न किया कर मुस्कुरा कर इतना

कोसो पैदल चलने को मजबूर न कर


कि मैं तुम्हे अपने घर जाते हुए देखा था 

कितनी हसीन हो तुम


बस चेहरे पर थोड़ा घमंड था

नही तो बड़ी नमकीन हो तुम


एक राज था दिल में, बताने को था तुम्हे

कि माथे की बिंदिया जान ले लेती है मेरी 


कोई ईद चांद के इंतजार में है 

पर मैं कैसे कहूं ईद मैं, चांद तू है मेरी


#बेढँगा_कलमकार 

✍ इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

शुक्रिया 💗

थी आवाज भर, जो कभी सुकून

सजीव तस्वीर, वो नज़र, काजल, बिंदियां  कमाल की थी मुस्कुराता चेहरा, छिपी उसमें गुनेहगार भी थी दी थी जख्म, दर्द नहीं  कराह थी, शिथिल पड़े  एहस...