बेखबर है कोई मेरे शहर से
उससे कहना याद आए तो कभी चली आए
मैं बेखबर था इस ख़बर से
कि थे वे मेरे शहर में हम ही न मिल पाए
अजीब नशा है मोहब्बत की
उम्र बढ़ रही है पर रुकने का नाम नही लेती
सवा सौ करोड़ में आधी आबादी
एक की तलाश है पर मिलने का नाम नही लेती
कैसे लिखूं बंद कमरे के उदास जिंदगी को
किसी की तलाश में आखें लाल करते हैं
छोड़ कर चली गई थी जो कभी
आँख में आसूं भरके, याद उसे आज भी करते हैं
#बेढँगा_कलमकार
✍ इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.)
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