तेरी मौजूदगी मंजूर है
इस धारा पर तू कोई कोहिनूर है
तुझे ही पाना चाहते हैं सब लोग
तू असल में जन्नत की हूर है
कस के पकड़ मेरे हाथ को
तू चल पड़ी रात को
सवेरा हो गया कब, पता नहीं
अब चाहती है कोई पकड़ ले
जिंदगी भर के लिए उसके हाथ को
मंजूरे खुदा कोई फैसला हो
और जो फ़ैसला हो मेरे पक्ष में हो
मन्नत तो नही मांगी थी पर
मांगू जो मन्नत मेरी मन्नत में तू हो
और भूल कर अगर चाहने लगूं
तो मेरे चाहत मात्र तू हो
कोई शायर लिखे जो मेरी दास्तां
तो लिखें मेरी जो हो वही जन्नत की हूर हो
#बेढँगा_कलमकार
✍ इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
शुक्रिया 💗