मंगलवार, 13 सितंबर 2022

जन्नत की हूर

तेरी मौजूदगी मंजूर है

इस धारा पर तू कोई कोहिनूर है


तुझे ही पाना चाहते हैं सब लोग

तू असल में जन्नत की हूर है


कस के पकड़ मेरे हाथ को 

तू चल पड़ी रात को


सवेरा हो गया कब, पता नहीं

अब चाहती है कोई पकड़ ले

जिंदगी भर के लिए उसके हाथ को


मंजूरे खुदा कोई फैसला हो

और जो फ़ैसला हो मेरे पक्ष में हो 


मन्नत तो नही मांगी थी पर 

मांगू जो मन्नत मेरी मन्नत में तू हो 


और भूल कर अगर चाहने लगूं

तो मेरे चाहत मात्र तू हो 


कोई शायर लिखे जो मेरी दास्तां

तो लिखें मेरी जो हो वही जन्नत की हूर हो


#बेढँगा_कलमकार 

✍ इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.)

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