गुरुवार, 30 जून 2022

दिल एक ही है कितनी बार तोड़ोगे

न जाने किस चीज की 

नशा करती हैं वो


कोई तो पूछो 

अब उनसे


रोज़ किस किस से 

फंसा करती हैं वो


दिल को खिलौना बना रखा है

जब चाहे तोड़ देते हैं


कदर कितनी भी करू उनकी 

जब मन आए छोड़ देते हैं


बस करो यार 

दिल एक ही है कितनी बार तोड़ोगे


थक गया हूं यार 

अब कितनी बार छोड़ोगे


#बेढँगा_कलमकार 

✍ इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.)

बुधवार, 22 जून 2022

तुम मिलने न आए, हम अकेले हैं

सारी दर्द काट दी, तुम न आए अकेले हैं 

बात करती थी, दिल न लगाए अकेले हैं 


दुआ करता रहा मिलने की,  

तुम मिलने न आए, हम अकेले हैं 


मीलों का सफ़र है, थकना न ऐ जिंदगी  

बड़ी सिद्दत से चाहा है, गुमना न ऐ जिंदगी 


अपनी अता से बातें करता हूं 

हाथ छोड़ते न तो खोता न ऐ जिंदगी 


कोई इश्क था, मिला नही  

इंतजार तो है, आज भी करता  


कहने को तो बहुत कुछ है 

पर छोड़ो, जाने दो, अब कहना नही 


भूल था, जो कबूल किया 

दिल भी मानता है, बड़ा भूल किया  


मुर्शद, होश उड़ गए हैं आज  

भरी महफ़िल में, जो उसने सलूक किया 


#बेढँगा_कलमकार 
✍ इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.) 

शनिवार, 18 जून 2022

दिल दिल्ली में, दिलदार इलाहाबाद में बैठा है

कुछ दर्द तो है दिले, तनहा नही जिया जाता

कोई ख़बर दे आओ उन्हें, अब नही रहा जाता 


बड़े दिन हो गए है बात किए कुछ गुफ्तगू हो जाएं

ठंडी हो जाएगी चाय, कुछ चुस्कियां ले ली जाएं 


बड़े अरमान हैं दिल में, बताए तो शर्माना नही 

इंकार करना रहे तो मुस्कुराना नही 


हां, मुस्कुराहट को कोई प्यार समझ बैठा है

तेरा मुस्कुराना, इकरार समझ बैठा है


बीत जाता है उसके दिन किसी तरह

रात में चैन नहीं, नींद हराम कर बैठा है


बात मसलन ऐसी की बता नहीं सकता है

बाज़ीगर था हार गया आप पे, दिल लगा


दिल दिल्ली में, दिलदार इलाहाबाद में बैठा है

प्यारी गुड़ीया से प्यार, हाए दिल लगा बैठा है


#बेढँगा_कलमकार 

✍ इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.)

गुरुवार, 2 जून 2022

आँख में आसूं भरके, याद उसे आज भी करते हैं

बेखबर है कोई मेरे शहर से 

उससे कहना याद आए तो कभी चली आए


मैं बेखबर था इस ख़बर से

कि थे वे मेरे शहर में हम ही न मिल पाए


अजीब नशा है मोहब्बत की 

उम्र बढ़ रही है पर रुकने का नाम नही लेती


सवा सौ करोड़ में आधी आबादी 

एक की तलाश है पर मिलने का नाम नही लेती


कैसे लिखूं बंद कमरे के उदास जिंदगी को 

किसी की तलाश में आखें लाल करते हैं


छोड़ कर चली गई थी जो कभी

आँख में आसूं भरके, याद उसे आज भी करते हैं


#बेढँगा_कलमकार 

✍ इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.)

थी आवाज भर, जो कभी सुकून

सजीव तस्वीर, वो नज़र, काजल, बिंदियां  कमाल की थी मुस्कुराता चेहरा, छिपी उसमें गुनेहगार भी थी दी थी जख्म, दर्द नहीं  कराह थी, शिथिल पड़े  एहस...