शुक्रवार, 10 मई 2024

उसी शहर की वो मासूम शख़्स

राहे इश्क में बहुत आएंगी परेशानियां मगर

तुम इसे हंस के टाल देना


मालुम है, न


लगी हो आग अगर दिल में 

तो बुझाने कोई दमकल नही आता 


बात वही है कि जान जाए भले

पूछने अपना भी शहर नही आता 


उसी शहर की वो मासूम शख़्स 

जरा सी बात पे गुस्सा


कमतर समझ जो

बेहतर की तलाश में निकल जाता 


शहर दर शहर जल गए कई बार

कोई ख़बर न रखा 


तुम तो गांव के आशिक़ 

तेरा कौन शहर में, जो तुझे देखने आता ...

लगन-ए-इश्क

कई बार 

उसने वचन तोड़ी..

पर महबूब ने अपनी कसम क्या दी, 

उसने वचन तोड़ना भूल गया..


कि

लगन कैसी है ये इश्क की 

न टिकने वाला जरा भी अपनी बात पर

वो न तोड़ा अभी तक वचन

महबूब ने जिस बात पे दी थी अपनी कसम ...

छाया ए प्रेरण में पली बढ़ी सरल शब्द पर स्पष्ट दास्तान बयां करती है

भटका दो ख़ुद को

अगर पग हो राह ए इश्क पर


न जागा करो रात भर

नहीं आयेगी, अब जिद्द न किया कर


है वो किसी और की

हुए हैं हर प्रयास विफल


तेरे लिए अब वो नही

कहीं और पर प्रयास कर...


सुकून ए इश्क में लिखी हर...

किसी की इश्क रही होगी


मुझे क्या, मालुम होगा 

दर्द उसने जो सही होगी 


लिखना महत्वपूर्ण है

दर्द ए गम भुलाने को


मेरा कोई वास्ता नहीं

शालीनता से कहता हूं इस ज़माने इश्क को...


लिखा है कई बार 

छुपाया है


गम भले ही उसकी खुद की हो

किसी और की है, कह कर बताया है


अंजान है राही

मालुम पड़ता है


पर कैसे कहूं उसे अंजान..

जो हर विफलता पर, पुनः प्रयास करता है..


असीम कल्पना से परे

लिखी हर बात जान पड़ती है


छू तो जाएगी

दिल को, गूढ़ है ये रहस्य 


छाया ए प्रेरण में पली बढ़ी

सरल शब्द पर स्पष्ट दास्तान बयां करती है...

किरण थी बेला सुबह की उठा के तप्त हो झरोखे से विलुप्त हो गई

कवि..


लिखी थी जो पंक्ति

अतिसुंदर थी

पंक्ति या देखी जो तस्वीर झरोखे से थी


मन को विचलित करती

अक्षर लख पुरस्कृत

गढ़ गढ़न चंचल चितवन

पंक्ति क्यूं संवरती चली गई


दृष्टि दया भावना से प्रेरित

सम्मान की बात करती

हठ योगिनी साधना

झटपट कसम दे गई 


कई बात छिपाई

सुनाई भी त्याग दुनियां का नियम

मूल्य मौलिक यापन जीवन की

किरण थी बेला सुबह की 

उठा के तप्त हो झरोखे से विलुप्त हो गई


मान रख अब तू

बेला हूं मैं 


हर बार उतना ही लिख

जितना समझ 


अक्षर चार, दो शब्द

एक वाक्य न हो, सब कुछ समझा तो दी ...

थी आवाज भर, जो कभी सुकून

सजीव तस्वीर, वो नज़र, काजल, बिंदियां  कमाल की थी मुस्कुराता चेहरा, छिपी उसमें गुनेहगार भी थी दी थी जख्म, दर्द नहीं  कराह थी, शिथिल पड़े  एहस...