मंगलवार, 28 जनवरी 2025

थी आवाज भर, जो कभी सुकून

सजीव तस्वीर,

वो नज़र, काजल, बिंदियां 

कमाल की थी

मुस्कुराता चेहरा,

छिपी उसमें गुनेहगार भी थी


दी थी जख्म, दर्द नहीं 

कराह थी, शिथिल पड़े 

एहसास,

बना फिरता हूं पागल, मिली कोई आज ही थी ।।


थी आवाज भर,

जो कभी सुकून 

उसकी बाहें, करती थी जो 

कभी महफूज,


अचानक कुंभ में मिलना

मिलाप अंगुलियों का सर्फ़ी

फिर होठों का कुल्हड़ से

लगी ज्यादा बेहतरीन, उससे कहीं ।।


पर,कसमकश चाहत, वो बातें 

पर, मजबूर थी वो रातें


नदी का तराना, जमाव भीड़ का

थी जहां गूंज प्रीत की, थी वहीं रीति की ।।


देखना जिंदा उसमें,

आज भी फिर खुद को


खोजने बैठ गया फिर, संगम तीर 

उकेरने लगा उसके, 

आज वहीं सालों पुरा तस्वीर को ।।


गूंज, आवाज़ थी बहुत, 

टूटा शीशा सा पुनः फिर

दिल, आवाक, अब आवाज न थी, 

जब तस्वीर में वो सालों पुरानी बात न थी ।।


#बेढँगा_कलमकार

✍ इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.)

शुक्रवार, 10 मई 2024

उसी शहर की वो मासूम शख़्स

राहे इश्क में बहुत आएंगी परेशानियां मगर

तुम इसे हंस के टाल देना


मालुम है, न


लगी हो आग अगर दिल में 

तो बुझाने कोई दमकल नही आता 


बात वही है कि जान जाए भले

पूछने अपना भी शहर नही आता 


उसी शहर की वो मासूम शख़्स 

जरा सी बात पे गुस्सा


कमतर समझ जो

बेहतर की तलाश में निकल जाता 


शहर दर शहर जल गए कई बार

कोई ख़बर न रखा 


तुम तो गांव के आशिक़ 

तेरा कौन शहर में, जो तुझे देखने आता ...

लगन-ए-इश्क

कई बार 

उसने वचन तोड़ी..

पर महबूब ने अपनी कसम क्या दी, 

उसने वचन तोड़ना भूल गया..


कि

लगन कैसी है ये इश्क की 

न टिकने वाला जरा भी अपनी बात पर

वो न तोड़ा अभी तक वचन

महबूब ने जिस बात पे दी थी अपनी कसम ...

छाया ए प्रेरण में पली बढ़ी सरल शब्द पर स्पष्ट दास्तान बयां करती है

भटका दो ख़ुद को

अगर पग हो राह ए इश्क पर


न जागा करो रात भर

नहीं आयेगी, अब जिद्द न किया कर


है वो किसी और की

हुए हैं हर प्रयास विफल


तेरे लिए अब वो नही

कहीं और पर प्रयास कर...


सुकून ए इश्क में लिखी हर...

किसी की इश्क रही होगी


मुझे क्या, मालुम होगा 

दर्द उसने जो सही होगी 


लिखना महत्वपूर्ण है

दर्द ए गम भुलाने को


मेरा कोई वास्ता नहीं

शालीनता से कहता हूं इस ज़माने इश्क को...


लिखा है कई बार 

छुपाया है


गम भले ही उसकी खुद की हो

किसी और की है, कह कर बताया है


अंजान है राही

मालुम पड़ता है


पर कैसे कहूं उसे अंजान..

जो हर विफलता पर, पुनः प्रयास करता है..


असीम कल्पना से परे

लिखी हर बात जान पड़ती है


छू तो जाएगी

दिल को, गूढ़ है ये रहस्य 


छाया ए प्रेरण में पली बढ़ी

सरल शब्द पर स्पष्ट दास्तान बयां करती है...

किरण थी बेला सुबह की उठा के तप्त हो झरोखे से विलुप्त हो गई

कवि..


लिखी थी जो पंक्ति

अतिसुंदर थी

पंक्ति या देखी जो तस्वीर झरोखे से थी


मन को विचलित करती

अक्षर लख पुरस्कृत

गढ़ गढ़न चंचल चितवन

पंक्ति क्यूं संवरती चली गई


दृष्टि दया भावना से प्रेरित

सम्मान की बात करती

हठ योगिनी साधना

झटपट कसम दे गई 


कई बात छिपाई

सुनाई भी त्याग दुनियां का नियम

मूल्य मौलिक यापन जीवन की

किरण थी बेला सुबह की 

उठा के तप्त हो झरोखे से विलुप्त हो गई


मान रख अब तू

बेला हूं मैं 


हर बार उतना ही लिख

जितना समझ 


अक्षर चार, दो शब्द

एक वाक्य न हो, सब कुछ समझा तो दी ...

शनिवार, 13 मई 2023

2. कोई उनसे कहो डीपी लगा लें, मेरी आखें सुकून ढूंढती हैं

ख़ुद के तस्वीर से नवाजों ना 

एक बार ही सही

ख़ुद की तस्वीर लगा दो ना


अजीब कस्मकस है कुछ बोलती नही

छिपाए बैठी है राज़ कुछ खोलती नही


आतुर है सुनने को कान तरसती हैं

कुछ तो बोल दो धड़कन थमने को कहती हैं


वो शायरी बन गई थी मेरे लिए

पूरा तस्वीर उकेर दिया था एक शायरी पर


और एक झलक देखने को आतुर ये दिल 

पूरी रात जाग दिया था एक तस्वीर को लेकर


ख़ामोश रात डरावना मंज़र

कोई कुछ बोला ही नहीं


रात भर जागता रहा

मसला शांत कर दिया दूसरी तस्वीर दिखाकर


अपना कहने को बेकरार दिल 

तारीफ़ के पुलें बांधता है


फिर भी कोई प्रतिक्रिया नहीं

इंतजार में आशिक़ पूरी रात जागता है


#बेढँगा_कलमकार 

✍ इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.)


1.कोई उनसे कहो डीपी लगा लें, मेरी आंखे सुकून ढूंढती हैं

हां 

देखो 

हर बात तो नहीं मानती हैं ....

पर 

थोड़ा ही सही

हर इशारे जानती हैं ....


इश्क भले नहीं

खुद के 

तस्वीर से नवाजती...


पंक्ति का तस्वीर से तालुकात

बढ़ता

बिन कहे हर बात कह जाती...


एक रात 

कोई परी जागती रही 

सुना शहर

थोड़ा भी आवाज़ नहीं... 


मसला तस्वीर का था

पर इशारे में ही सही 

हर बात बता रही....


मूक

किन्तु बोलती तस्वीर

विरानी में कोई अपना कहता गया...


देखो कोई टिप्पणी बिन

राहें इश्क पर

कोई चलने को राज़ी हो गया...


दे न दर्द 

कर दिल जख्मी 

तेरी तस्वीर

 न गढ़ा पंक्ति में तो कहना...


एक दीदार करा

इशारा ही सही 

बेवक्त वक्त निकाल कर न आया

तो कहना...


जालिम राजी न हुआ 

किस्सा सुनाने को 


बड़ी उतावली थी

कोई ज़हर लेकर

मौका देख पानी में मिला दिया

किस्सा कहानी में बदल गया


कई सदियां गुज़र गया 

आज़ भी हिस्सा न हुआ

बेवक्त मौत हो गया , आशिक़ फरिश्ता हो गया


#बेढँगा_कलमकार 

✍ इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.)


थी आवाज भर, जो कभी सुकून

सजीव तस्वीर, वो नज़र, काजल, बिंदियां  कमाल की थी मुस्कुराता चेहरा, छिपी उसमें गुनेहगार भी थी दी थी जख्म, दर्द नहीं  कराह थी, शिथिल पड़े  एहस...