शुक्रवार, 17 सितंबर 2021

छत पर अब वो चाँद नजर नहीं आती है

उस गली में अब आना जाना बंद कर दिया हूं 

जिस गली की सोते जगाते याद आती है 

और भटकना चाहता था जब 

तब भटका ही नहीं 

अब क्या भटकू..

जब उस गली में वो चाँद नजर नहीं आती है


मै महफ़ुज होकर दिन रात उसके ख्वाब देखा करता था 

लगये टकटकी उसकी राह देखा करता था 

अब नहीं करना पड़ेगा इन्तजार उसका 

कि छत पर अब वो चाँद नजर नहीं आती है


#बेढँगा_कलमकार

✍  इन्द्र कुमार  (इ.वि.वि.)

इश्क बहुत रुलाती है , मेरे यार

आज रुलाती है

 मुझे इश्क 

हा सताती है 

मुझे इश्क 

तू ठीक कहता था 

मेरे यार 

वो छोड़कर 

चली जायेगी 

एक दिन , 

हा वो चली गई 

इश्क बहुत सताती है 

मेरे यार

इश्क बहुत रुलाती है 

मेरे यार


✍  इन्द्र कुमार  (इ.वि.वि.)

मोहब्बत की फरमाइश जो की थी तूने ।। पूरी कर दी जाएंगी , जरा चांदनी रात आने दो

ढल रहा है दिन जरा शाम आने दो

मिलूंगा उसी चांदनी चौक चौराहे पर जरा इंतजार कर 

और 

मोहब्बत की फरमाइश जो की थी  तूने 

पूरी कर दी जाएंगी , जरा चांदनी रात आने दो 


कुछ पहलूवो पर राज़ है , पर्दा उठाना है

और खोए हैं जो अब तक स्वप्न में , उनको जगाना हैं 

और ख्वाब जो है , कुछ कर दिखाने की 

राह पर प्रशस्त कर उन्हें , हकीकत बनाना है


#बेढँगा_कलमकार

✍  इन्द्र कुमार  (इ.वि.वि.)

जलमग्न हो रहे हैं पूरे की पूरे शहर

एक अरसे से कोई खत न कोई संदेश आयी 

दहक रहा है दिल अग्नि सा कैसी है वो रोग लगायी 

और अपनी निगहो से जो चोट की थी दिल पर 

आज वो चोट फ़िर से है उभर आयी


दर्द स्पष्ट झलक रहा है उसके चेहरे पर 

चोट गहरा है, इलाज नही है शहर भर 

तापमान बढ़ रहा है उसके बदन का 

और जलमग्न हो रहे हैं पूरे की पूरे शहर


#बेढँगा_कलमकार

✍  इन्द्र कुमार  (इ.वि.वि.)

नहीं तो यूपीएससी क्रैक करने में कहां देरी है

मेरी हथेली की कुछ लकीरे 

बस बदलनी है

कुछ वक्त , कुछ फखत 

बस बाक़ी है 

नहीं तो यूपीएससी क्रैक करने में

कहां देरी है 


मैं ख़ामोश हूं अभी 

जल्दी की कोई बात नहीं है

नदी की तरह सतत चल रहा हूं

रहमत है खुदा की 

दर्द पर मरहम लगा कर 

रात भर जग रहा हूं 

हौंसला बुलंदी पर है 

डरने की कोई बात नहीं है


#बेढँगा_कलमकार

✍  इन्द्र कुमार  (इ.वि.वि.)

सब जहां में पराया है मेरा

तुम क्या हो बस तुम्ही को पता है 

मंजिल कहां है रास्ता कहां है 

क्यों लिखते हो खुद को अकेला 

मैं भी साथ हूं तो कहां तू अकेला है


तुम्हारे हर रास्ते का छाया हूं मैं 

तू जहां जाएगा आऊंगा मैं 

खुद से अलग न कराना हमें 

बस तू ही तो अकेला मात्र है मेरा 

बाकी सब जहां में पराया है मेरा


#बेढँगा_कलमकार

✍  इन्द्र कुमार  (इ.वि.वि.)

नहीं हैं खिड़की बस है एक दरवाजा वो भी बंद है

मैं तन मन सब तुझे दे दू 

तो क्या करोगी

मैं टूट जाऊ मर जाऊ 

तो क्या करोगी 

बस ख्वायिस रहेगी आप से हमें 

अपनी सीने से एक बार लगा लेना हमें 


दिल के गहराईयों में झांक कर देखो 

साफ सब कुछ नज़र आएगा 


अगर नज़र में है खोट 


मैं दिखाने बैठ गया और मर भी जाऊ 

तो तुम्हें नज़र नहीं आएगा


नहीं मानता कसम को  

सब भरम हैं 

गुम हूं एक कमरे में 

नहीं हैं खिड़की 

बस है एक दरवाजा वो भी बंद है


#बेढँगा_कलमकार

✍  इन्द्र कुमार  (इ.वि.वि.)

थी आवाज भर, जो कभी सुकून

सजीव तस्वीर, वो नज़र, काजल, बिंदियां  कमाल की थी मुस्कुराता चेहरा, छिपी उसमें गुनेहगार भी थी दी थी जख्म, दर्द नहीं  कराह थी, शिथिल पड़े  एहस...