बुधवार, 30 मार्च 2022

मेरा हाल न पूछो मेरे रह गुजर ।। हम भी इन्हीं हालातों से गुजरे हैं

तुम कुछ कहो या ना कहो

सारी इशारे हम भी समझते हैं

मेरा हाल न पूछो मेरे रह गुजर 

हम भी इन्हीं हालातों से गुजरे हैं


व्याकुल भरे नजरों से देखती हो तुम

बिन मुख खोले, बेबसी कहती हो तुम

छुपाएं न छुप रही है, पता है हमें 

बिन बताए जो कुछ कहती हो तुम


#बेढँगा_कलमकार 

✍ इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.)

शनिवार, 26 मार्च 2022

हम भी औरों की तरह ।। मर गए होते फिर

मोहब्बत की कशिश, जुबान बंद थे 

वो देखते रहे, हम कुछ कह भी न पाये

चलती गई बीच शहर से बस

समय घटता रहा, दूरियां बढ़ती गई फिर 


उनकी नज़रें आग समेटे हुई थी 

मानों लगी आग वर्षों से हो

जो नज़र मिल जाती, मेरी भी उनसे तो

डर था कि जलने से, बचाते कैसे खुद को


परदा पड़ गया था अक्ल पे 

कहना बहुत कुछ था, न कह पाए उनसे 

ज़हर का प्याला भी, अमृत समझ पीते तो 

हम भी औरों की तरह, मर गए होते फिर


कही खबर लग जाती तो 

शहर भर बदनामियां होती बहुत

हार कर भी उम्मीद बांध लेते थे जो

सारी उम्मीद खुद के ख़ुद ख़त्म हो गई होती फिर


#बेढँगा_कलमकार 

✍ इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.)

ध्यान भंग धन्य हो प्रभु ।। भ्रम टूटा टूटे हैं हम

आसान न समझ मुकद्दर तू

मुुश्किल भरा पथ है इश्क

बड़ी जाती हुई है साथ इसके

कह गए कविराज .......


अर्थ निकालते हैं अनर्थ 

सहज सरल बात है जिसके 

समझ नहीं, घात लगाए बैठे हैं

गरल उगलते है रात-दिन


ध्यान भंग धन्य हो प्रभु

भ्रम टूटा टूटे हैं हम

तोड़ दिल को टुकड़ों में

लूटा गया, लुटे हैं हम


गहन गर्म गरमाहट मात्र

दानिश दहल ईजा मात्र

गुजर राह रोही को 

रजनी में भी नही राहत मात्र


#बेढँगा_कलमकार 

✍ इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.)

शुक्रवार, 18 मार्च 2022

खामोशी लिखूं तो सक न करना ।। किसी की आंखे आज भी ढूढती हैं।।

तरह तन की बदलती आवाज़

अदा की वो पूरी सालार

कह गुजर गए कई लोग

पूछते पूछते उसकी हाल 


फिक्र कर रहे हैं इतनी 

सहज कह देते हैं बड़ी-2 बात

न पूछ मुझसे मेरे रहबर 

मुुश्किल भरे सवाल


जिक्र नहीं करता जिसकी

उम्र की बीतती कैसे रात

बावली हो गई थी नज़रे 

मुकम्मल नही थी मुलाकात


खामोशी लिखूं तो सक न करना 

किसी की आंखे आज भी ढूढती हैं

बीत गए कई साल क्षण क्षण में

पर शर्म से पर्दा वो आज़ भी करती है


महज़ बात नहीं , है हकीकत

कैसे लिख दूं , बादल के बूंदों को

कितना तड़पा होगा वो भौंरा 

बिछड़ क्यारी के उन फूलों से 


तकलीफ़ हुआ होगा 

जिक्र जब कोई करता होगा 

दिन तो बीत जाते होंगे उसके भी 

पर रात उसके भी कैसे बीतता होगा


#बेढँगा_कलमकार

✍ इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.)

रविवार, 6 मार्च 2022

एक थी दोस्ती और वो भी , अब चला नहीं पाते

किसी के नजरों में 

गिर गया

कसूर न था 

इश्क था दोस्ती था 

और कुछ नहीं

बस मजबूर था 


सबूतों के तर्ज़ पे 

खड़ी थी मीनार

सबूत न देते , नाराज़ रहते 

आंख में आसूं थे 

और कुछ नहीं

बस काबुल न था


तकलीफ़ पर माफियां

कैसे मुस्कुराते

ज़ख्म पर नमक

कैसे भूल जाते 

हक कह कर चल बनते 

कॉल का मरहम 

कैसे सहन करते 


रात आधी, खुली आसमां

और कुछ नहीं 

नींद नही , खुली आंखें 

और कुछ नहीं

भूखे थे , प्यासे 

नहीं कोई गलतियां

बोलो कैसे सह पाते


कैसी है उनकी नज़रें 

पहचान नहीं पाते

वक्त कम बातें बहुत

बता नहीं पातें 

एक थी दोस्ती और वो भी

अब चला नहीं पाते


#बेढँगा_कलमकार 

✍ इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.)

शुक्रवार, 4 मार्च 2022

अंजान कहर सा ढा दी हो

जितनी जाएं तू दूर 

उतनी ही पास हूं 

तेरे हक के कतरे कतरे में 

छुपा एक ऐसा राज़ हूं 


कि कर बतर तू  

हर कल में आज हूं 

तू छुपाएं भले दुनियां से 

पता है हर सांस में हूं 


भोली बन इतराती हो

कैसी लगन लगा दी हो

भूलूं कैसे उन यादों को

जो साथ बिता दी हो 


जरुरत नहीं है कैसे बोलो

डाली से कलियां हटा दी हो 

निर्झर हो गई है डाली बोलो

अंजान कहर सा ढा दी हो


#बेढँगा_कलमकार 

✍ इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.)

थी आवाज भर, जो कभी सुकून

सजीव तस्वीर, वो नज़र, काजल, बिंदियां  कमाल की थी मुस्कुराता चेहरा, छिपी उसमें गुनेहगार भी थी दी थी जख्म, दर्द नहीं  कराह थी, शिथिल पड़े  एहस...