शुक्रवार, 28 मई 2021

अनसुलझी मोहब्बत कर बैठा

 मुकद्दर से बस एक ही सवाल है 

कि मोहब्बत का क्या जवाब है 

मुसलसल इश्क पुरा भी होता है क्या 

कि ये सिर्फ़ चलती फ़िरती दूकान है


कि उन्हें फ़क्र है इश्क पे 

जताने को कहते हैं 

लहर है समंदर मे 

उसे आने को कहते हैं 

कि मोहब्बत के दो-चार पन्ने 

पढ़ क्या लिये 

इश्क निभाने को कहते हैं


कि मेरा किरदार एक खलनायक का था 

पर मै हीरोगीरी कर बैठा.. 

जहाँ पहनने को था नफ़रतो का ताज 

वहाँ अनसुलझी मोहब्बत कर बैठा


#बेढँगा_कलमकार 

✍  इन्द्र कुमार  (इ.वि.वि.)

किताबों में खोता जा रहा हूँ

 जिन्दगी बिगड़ती जा रही हैं 

बेकार होता जा रहा हूँ 

सोचा था, घूमूंगा सारा जहां पर 

पागलो की तरह अब सारा दिन

किताबो में खोता जा रहा हूँ 


मुस्किले हल होने की नाम नहीं लेती 

किताबो की कारवा थमने की नाम नहीं लेती 

सोचा था खत्म हो जायेगी परिंदे की ख्वाब 

पर उसके उड़ने की सिलसिला थमने का नाम नहीं लेती


#बेढँगा_कलमकार 

✍  इन्द्र कुमार  (इ.वि.वि.)

बुधवार, 26 मई 2021

विवाद है सिर्फ़ नाम को लेकर हिंदू है या मुसलमान को लेकर

 !! विवाद है सिर्फ़ नाम को लेकर 

हिंदू है या मुसलमान को लेकर !!


नाम है खान सर या फ़जल खान सर 

विवाद बढ़ गया तब जब जिद्दी बन गये छत्रगण 

मजाक-मजाक मे वो फ़िर बोल बैठे 

बैंक वाले बुलाते है अमित सिंह सर


चला ट्रेंड ट्विटर पर फ़िर 

विवाद बढ़ रही थी खान सर पर फ़िर 

जबकि किये है कई किताबे लांच वो 

हो सेलेक्सन तुम्हारा, हिन्दी-उर्दू मे खान सर


विवाद है सिर्फ़ नाम को लेकर 

हिंदू है या मुसलमान को लेकर


किसी तस्वीर मे दिखते हिन्दू भेष में 

कई तस्वीर में दिखते मुस्लिम भेष में 

बँधवाते रक्षाबन्धन के दिन रखी वो 

कभी दिखते मानाते ईद मोहर्रम वैशाखी वो


नाम से बदनाम किये है उनको वो 

बाँटे शिक्षा जो और निष्पाप किये है जो 

क्यूँ दिखाये टिकट ड्राइवर को वो 

देखे वो जिसका काम है जो हो टी.टी वो


विवाद है सिर्फ़ नाम को लेकर 

हिंदू है या मुसलमान को लेकर


एक पत्रकार महोदय कुरान पूछ बैठे 

शुरूआत कँहा से होती वो सुना बैठे 

''बिस्मिल्लाह रहमान रहीम अल्हम्दुलिल्लाह ''

चेहरे का उतर गया फ़िर पानी उनके 

खान सर को सुनते, मुह बना बैठे


करने दो मुझे, मेरा काम है जो 

शिक्षा का वितरण करना अनिवार्य है जो 

मै भारतीय हूँ , भारतीय ही रहने दो 

मेरा जाति है शिक्षा, धर्म है अध्यापक वही रहने दो


विवाद है सिर्फ़ नाम को लेकर 

हिंदू है या मुसलमान को लेकर


करते तुलना स्वयं को राहुल गांधी से वो 

दस सेकेण्ड का वीडियो करता है बदनाम जिसको 

''इस साइड से आलू डालो ,

 उस साइड से सोना निकालो ''आपका था 


मेरा भी कुछ ऐसा ही.. 

''अब्बा तो पन्चर साटिये रहे हैं, 

तु लोग भी पन्चर सटियेगा'' 

'' नही तो बडा़ होकर चौराहे पर

मीट काटिये गा'' करता बदनाम था


विवाद है सिर्फ़ नाम को लेकर 

हिंदू है या मुसलमान को लेकर


चोर को चोर न कहे, 

डकैत को डकैत न कहे तो क्या कहे 

क्यो फ़ैलाते हो झूठ इतना आप लोग कि, 

झूठ को भी लोग अब सत्य कहे 


मेरा भी सीता माँ जैसा हाल हुआ

जो बनवास काटी, लंका दहन देखा फ़िर 

देना होगा अग्नि परीक्षा नहीं था सोचा 

कहती फ़िर कि हे धरती माँ खुद मे मुझको समा ले जा


विवाद है सिर्फ़ नाम को लेकर 

हिंदू है या मुसलमान को लेकर


मुझको भी लगता भुल जाउ सब कुछ 

मुसलसल  यू ट्यूब को छोड़ ,

अलविदा कह जाउ सब कुछ 

मै तो मात्र एक अध्यापक था 

नहीं पता था एक दिन ये भी देखूँगा सब कुछ


बयाँ ये दर्द करता हूँ ,आँख मे आँसू है 

नहीं था जख्म जहाँ, खून वही का प्यासूँ है 

जो देते थे अब तक साथ मेरा,

वही मेरे खून के आज पिपासूँ है


विवाद है सिर्फ़ नाम को लेकर 

हिंदू है या मुसलमान को लेकर


#बेढँगा_कलमकार 

✍  इन्द्र कुमार  (इ.वि.वि.)

सोमवार, 24 मई 2021

!! सिर्फ एक सनम के लिए !!

 इख्तियार एक सनम चाहिए था 

वज्र हक कि जरुरत था कायदे में 

गुंजाइश था करता तकल्लुफ़ वो 

वहम करता था सिर्फ एक सनम के लिए


कई इनायते थी मगरूर था वो 

कर्ज था सर, गुमान हुस्ने बाहार का 

कर रहा इत्ला इश्क हुनर का वो 

कि इंतजार था सिर्फ एक सनम के लिए


#बेढँगा_कलमकार 

✍  इन्द्र कुमार  (इ.वि.वि.)

रविवार, 16 मई 2021

!!फ़ेल हो जाते मेरे सारे टिप्स और पैतरा!!!

 कभी कभी मुझे लगता है, उससे बात किया जाय 

दिल में है जो भड़ास सब निकाल दिया जाय 

डरता हु कि वो क्या सोचेगी मेरे बारे मे 

इसी डर में मेरी सारी दिन-रात निकल जाय 



खाता हूँ पौष्टिक आहार ताकि आये ताकत और हौसला 

डर न लगे, इस लिए किया हूँ ये फ़ैसला 

लेता हूँ टीप्स यू ट्यूब और मित्रों से 

पर फ़ेल हो जाते मेरे सारे टिप्स और पैतरा


#बेढँगा_कलमकार

गुरुवार, 6 मई 2021

!! संस्कार पर ही , क्यूँ बोलने चला था!!

थे बहुत शब्द तो,  क्या यही कहना था 

जब नहीं आता था,  तो क्यूँ बोलना था 

तेरे नजर मे खोट थे ,मालुम था तुझे 

तो संस्कार पर ही ,क्यूँ  बोलने चला था 


नारी का वजन को तौलने चला था, 

डरा भी नहीं तु, जो कहने चला था 

कठोर थे लहजे तेरे ,  नारियों पर 

समुन्दर भी सुन,  ठहरा हुआ था



तेरे नजर मे खोट थे ,मालुम था तुझे 

तो संस्कार पर ही , क्यूँ  बोलने चला था


तेरा विचार कितनो को भाया,  

वक्त का चक्र बता ही देगा  

सम्हल कर चल थोड़ा ,आगे और भी चलना 

बदल दे खुद को, नियती का क्या 

चार दिन ही तो हुये थे,  थोड़ा तो ठहरता


तेरे नजर मे खोट थे ,मालुम था तुझे 

तो संस्कार पर ही , क्यूँ  बोलने चला था


मर्जी उनकी,  स्वतन्त्रता है 

पहनना है जो उन्हे , पहनने दे 

वक्त क्यू जाया करता है, इन गुठनो के पिछे 

देखना ही था तो कुछ और देखते, 

क्या तुझे गुठने ही मिले थे


अगर मुझे नहीं है दिक्कत, उन्हे नहीं है दिक्कत 

तो  तुझे ही दिक्कत , क्यूँ मिले थे


तेरे नजर मे खोट थे ,मालुम था तुझे 

तो संस्कार पर ही , क्यूँ  बोलने चला था


तेरे एक वाणी मेरे लिए,  कितना कष्टदायक होगा 

है सर पर परीक्षा तुझे नहीं है पता क्या 

है दीदी भी तैयार,  नहीं पता था क्या 

जब आये ही तुझे चार दिन हुआ था, 

तो ऐसा बोलना जरुरी था क्या


तेरे नजर मे खोट थे ,मालुम था तुझे 

तो संस्कार पर ही , क्यूँ  बोलने चला था

#बेढँगा_कलमकार✍  इन्द्र कुमार  (इ.वि.वि.)

बुधवार, 5 मई 2021

!!बेदर्द इंसान!!

 दिल तोड़ कर मेरा 

वो हँस रही है 

हम मातम मे है पिरोये 

वो जस्न कर रही है 

आसुँओ के बहने का 

है कैसा सिलसिला

उसे लगता नहीं है कि 

उससे कोई गुनाह हो रही है


कि 

पड़ता नहीं फ़र्क उसे 

वो तो खुद्दार निकली 

वो है पत्थर दिल दर्द होता नहीं 

वो तो बेदर्द इंसान निकली


#बेढँगा_कलमकार ✍ इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.)

मंगलवार, 4 मई 2021

!! शासक(कोरोना)जहान का!!

जब था साल उन्नीस

अफ़रा तफ़री हेतु बचने 

नहीं दिया खबर चीन 

करा रिसर्च अन्दर ही अन्दर 

हुआ विवश, लीक हुई खबर 


चमगादड़ या फ़िर माँस से 

लगाते अनुमान बुहान के 

देते नसीहत, डाक्टर गण को 

करते आइसोलेट संक्रमित जन को


था जो अब तक बुहान का 

बन बैठा शासक जहान का


अब साल था बीस 

जब दुनिया हुआ सील 

हुआ बुखार, आता छिक 

बदन दर्द ,सास लेने मे तकलीफ


नाम कोरोना फ़ैलाता दहसत 

सुना खबर, पहुंचाया जन-जन 

माना था अफ़वाह जिसे

झेलत है सारा संसार उसे


था जो अब तक बुहान का 

बन बैठा शासक जहान का


बढे़ संक्रमितो की संख्या 

शुरु हुआ मौत का तांडव 

चिरितार्थ हुआ तब शब्द एक 

नाम लाॅकडाउन कहते अनेक 


तब फ़ैला खौफ़नाक सन्नाटा 

चिरते कभी आरक्षी के मोटर 

एहसास कराती सूरज की किरण

मिलती रात गुप, कब्रिस्तानी सूरत


था जो अब तक बुहान का 

बन बैठा शासक जहान का


जन्म बुहान,

बन्द सारा जहान हुआ 

लिया रुप महामारी का, 

सड़के बन्द , 

दफ़तर बिरान हुआ 


दुकान खाली हुए 

आते एका-दूक्का नजर 

लगाये मास्क सड़को पर

हुआ खाली शहर 

ऊँची-ऊँची इमारते 

पलायन करते फ़िर सब


था जो अब तक बुहान का 

बन बैठा शासक जहान का


#बेढँगा_कलमकार 

✍  इन्द्र कुमार  (इ.वि.वि.)

!! यही इन्साफ़ है क्या !!

कैद कर रखे है दो जून के रोटी के लिए 

फ़िर भी जले कभी चूल्हा एक बार 

बहाते है दिन-रात पसीने की गंगा 

ताकि आबाद रहे दर्द से हर साल 


बन गया है अब हालात पुराना 

जख्म सहने की यह बात पुराना 

रोते बिल्बिलाते है उनके बच्चे 

कन्दरे से ये शेर का दहाड़ पुराना 


कमीज जो चक्तियो से अब तक दूर न हो पाया 

बने रहे हालात वही कि झुग्गी-झोपड़ी से दूर न हो पाया 

दर्द सहने की लत जब लगने लगा 

तभी  मन में अस्थिर सवाल आया


है इस दर्द की दवा जब पता चला

तब जन मानस शहर की वोर चला 

दर्द जब कुछ सहमा ही था 

तभी एक जलजला उद्गम हुआ


प्रतिबंध तब लगने लगा 

हालात ये की जन- मानस घर लौटने लगा 

मशीनो की नगरी फ़िर विरान होने  लगा 

दर्द फ़िर से बढ़ने लगा


दिल कहता है कि उस उर्जा को इत्तला कर दूँ क्या 

भूखा - प्यासा रहूँ, और ख़ता कर दूँ क्या 

जंगे हालात न बने उससे पहले 

 उस दहशत और दर्द को दफ़ा कर दूँ क्या 


उठा प्रश्न चिन्ह फ़िर 

हालात सदैव यही रहेगा क्या 

दर्द और पीड़ा जन-मानस 

सदैव सहेगा क्या 

शासन - प्रशासन सिर्फ अल्फ़ाज है क्या

दर्द दे रहा है इतना , यही इन्साफ़ है क्या


#बेढँगा कलमकार ✍  इन्द्र कुमार  (इ.वि.वि.)

सोमवार, 3 मई 2021

!!दिल को समझ बैठे वो कोई चौराहा !!

 #बेढँगा_कलमकार 

दिल को समझ बैठे वो कोई चौराहा 

आते हैं जाते हैं, ठहरना नहीं आता 

अब तो गमो कि भीख मांगी नहीं जाती 

समझ लो भिख गमो का यु मिल जाता


अब और क्या करना , वो जो कर बैठे हैं 

दिल का गम दे कर वो भुल बैठे हैं 

गुजारा अब न होता है,  चली आओ 

नदियाँ भी अपना रास्ता भुल बैठे हैं


चलती है हवा जो बगीचे मे 

अच्छा नहीं लगता 

है गर्म इतना कि बदन भी नहीं सहता 

तेरे ही ख्यालो मे खोया रहता हूँ 

न भूल सकता हूँ,  न भूल पाया हूँ


दिल को समझ बैठे वो कोई चौराहा 

आते हैं जाते हैं, ठहरना नहीं आता


तेरा हँसना और  मुस्कुराना 

बहुत अच्छा लगता था 

पर अब दूसरो के साथ 

मुस्कुराना अच्छा नहीं लगता


जब मै गमो मे बैठ कर कोई सेर लिखता हू 

समझ जाती है कि कोई दूर चला गया 

वो दौड़ी चली आती है दर्द को बांटने 

लगता है जैसे हो कोई प्राण प्रिया


दिल को समझ बैठे वो कोई चौराहा 

आते हैं जाते हैं, ठहरना नहीं आता


#बेढँगा_कलमकार 

✍  इन्द्र कुमार  (इ.वि.वि.)

#बराबरी_का_शगुन

 अब हिचकिया आने लगी है 

क्या मुझे वो याद करने लगी है 

मिला तो एक बार ही था 

क्या वो मुझे प्यार करने लगी है 


कि 

क्या उसे ख़त लिखा जाये 

सज सवर कर मिला जाये 

कि और भी कर दूँ दूरिया कम

 बैंड-बजे और बारात के साथ मिला जाये 


कि बेकरारी सताने लगी है 

मुझे भी उसकी याद आने लगी है 

अब ये दूरिया और न सहा जाये 

मुझे भी उसपे तरस आने लगी है 


कि 

मोहब्बत की जाल फ़ेकना पड़ेगा 

उसे भी ये दर्द झेलना पड़ेगा 

वो चाहती है बराबरी का शगुन 

तो लगता है मुझे भी IAS बनना पड़ेगा 


#बेढँगा_कलमकार 

✍  इन्द्र कुमार  (इ.वि.वि.)

!!आरक्षी गुजरात की !!

 !!आरक्षी गुजरात की !!


बात हुआ, गिरफ़्तार हुआ 

कैमरे मे कैद , चित्कार हुआ

 था मसला, इजाजत की 

 नियम नही कैदे-कानून की 


कर सकती थी, पाश्चात्य भी 

कर न सकी आरक्षी गुजरात की


अन्दाज नयी , फ़रमान नयी 

कर सकती थी कार्य प्राणवायु की

चिंगारी है, जो होती प्रज्ज्वलित 

मोहताज हुयी, जो थी महिनों हालात की


कर सकती थी, पाश्चात्य भी 

कर न सकी आरक्षी गुजरात की


खान पान या फिर हो जातीय 

आर्थिक स्थिति और खड़ी संकट 

बनी किरकिरी या फिर डाली नजर

छुपा रही कमजोरी क्या हुकुमत


क्या नहीं है हुकुमत ,उस मुकाम पे 

जो भेद सके मसलो को ,अपनी तलवार से 

दो जुन की रोटी, डीग्रीधारी रोजगार की 

आर्थिक, राजनीतिक मसलो और शान की


कर सकती थी, पाश्चात्य भी 

कर न सकी आरक्षी गुजरात की


तो जहाँ होती कमजोर 

करती हुकुमत संस्था का प्रयोग 

फ़िर बात वही है आंदोलन 

जहाँ काम लेती आरक्षीगण 


तब होती उग्र समाज 

नयी सत्ता का करती तलाश 

होती चुनाव,  सही बाताते उसे 

करती चुनाव मे जो फ़तेह


बात अब संरक्षण की

कर न सकी हुकुमत भारत की 

कर सकती थी, पाश्चात्य भी 

कर न सकी आरक्षी गुजरात की


#बेढँगा_कलमकार ✍  इन्द्र कुमार  (इ.वि.वि.)

शनिवार, 1 मई 2021

!! सत्ता_ मेरे बापू _मातम !!

1.

अब वो नजारा न रहा 
बदल दे रास्ता और मंजिल 
भुल जा उनको 
जो अपनो को ही 
जीते जी फ़ूक दिया

अब वो कहते हैं 
करु गुलामी उनकी 
ये बर्दाश्त कहाँ होगा 
जो अपनो को ही 
जीते जी कफ़न मे पिरो दिया

भलाई के दौर में 
जमाना पिछे जा रहा 
हमे अभी मालुम चला 
हालत इतने बद्तर हो गया 
जिनके लिये लडा़ वही 
सिने मे खंजर घोप दिया

वो लड़ाई मे भी जब
 सिकस्त खाने लगे 
कहते मेरे मत को 
ही लूट लिया 
उतर मैदान मे कमान 
सम्हाली नही जाती 
हालात ये, कि वतन 
मे भी विभेद कर दिया

#बेढँगा_कलमकार ✍ इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.)

2.
अब सुबह की लालिमा मे भी 
वही तपती धूप आती है 
जमी गिली क्यो न हो 
वही बन्जर भू नजर आती है 

अब वो हमे सलिका 
सिखा रहे हैं बगावत का 
तो कह दू , कि
उनको खुद कि जमी 
क्यूँ नजर नहीं आती है 

मेरे मातम का जमावटा 
ऐसे मनाते है 
बताते है मेरे वजूद की 
खामिया 
आया इसलिये थे कि 
अपना लगाव, 
 फ़ूक दिये जीते जी जिन्हें 
उन्हे बताते है

#बेढँगा_कलमकार ✍   इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.)

3.
वाह रे तेरे शोकोजहद 
कि बेताबी 
तेरे मसलन कि 
उम्मीद 
वो जमी की आदत 

कब तलक प्यास 
बूझेगी तेरी 
कब नदी की धारा 
करवट बदलेगी 

है सिने मे प्यार अब भी 
तु जीत जा 
छोड़ दूंगा शहर तेरा 
कुछ पल अभी 
रुक जा 

तेरा शरीर आग की 
ज्वाला मे जल रहा 
मै तो था शितल 
तभी हू अभी भी चल रहा 

तेरे साथ का रफ़ू अभी 
बोल रहा 
चलता था धीरे-धीर 
शायद,  इसिलिए हू 
डोल रहा

#बेढँगा_कलमकार ✍   इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.)

थी आवाज भर, जो कभी सुकून

सजीव तस्वीर, वो नज़र, काजल, बिंदियां  कमाल की थी मुस्कुराता चेहरा, छिपी उसमें गुनेहगार भी थी दी थी जख्म, दर्द नहीं  कराह थी, शिथिल पड़े  एहस...