शनिवार, 30 अप्रैल 2022

जोगी की बिजली भी बेवफा हो गई

वो इलाहाबाद की गंगा होती 

तो मैं भी उसका घाट हो जाता


गर्मी को भी हंस के सह लेता 

भले पारा सौ के पार हो जाता


बिजली ने दिल तोड़ दिया

तो सब ने पसीना छोड़ दिया


जनरेटर पर भरोसा था

तो डीजल ने रिकॉर्ड तोड़ दिया


गर्मी में निकलना सपना हो गई 

इग्लू , इस्पात कारखाना हो गई 


सोनम तो बेवफा थी ही 

पर जोगी की बिजली भी बेवफा हो गई


#बेढँगा_कलमकार 

✍ इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.)

गुरुवार, 28 अप्रैल 2022

तुम भूल गए हो मुझको ।। या फिर दिल लगा लिए हो और कही पर

मुतलक किसी की आखें ढूंढती है बहुत

बैठ प्रेम वाटिका में, काटती है दिन बहुत


बड़ी उतावली रहती है जानने में 

कोई एक लड़का था, अब रहता है किधर 


नज़र से इश्क, कोई है जिसकी नही खबर 

कभी टकराती है नजर, तो बोलता नही ठहर 


पूछती है मेरे दोस्तों से

क्या कोई लड़का कभी चर्चा करता हैं मुझ पर


एक ही शहर में रहकर दूर है बहुत

दिल करता है मिलने को, पर वो आता नही नज़र


मोहब्बत है मुझे, उससे 

पर घबड़ाती हूं, कि कैसे कहूं जाकर


कहती है, मेरी बेबसी को समझ लो तुम

इंतजार करती हूं, करती रहूंगी उम्र भर 


पर तुम भूल गए हो मुझको

या फिर दिल लगा लिए हो और कही पर


#बेढँगा_कलमकार 

✍ इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.)

रविवार, 24 अप्रैल 2022

छोड़ कर जाती है तो छोड़ों जाने दो ।। तुम दूसरी को तलाशो

तुम्हे इश्क की नजर लग गई 

खुद को सम्हालो 


बेहतर की तलाश में

खुद के दिन गुजारो 


छोड़ कर जाती है तो छोड़ों जाने दो

तुम दूसरी को तलाशो 


देखते नही,

महंगाई बढ़ गई


उसके खर्चे बढ़ गए 

शाम के नखरे बढ़ गए 


झेलते हो कैसे

जब गैरों से रिश्ते बढ़ गए


नजरे औरों से लड़ाती है

तो लड़ाने दो 


छोड़ कर जाती है तो छोड़ों जाने दो

तुम दूसरी को तलाशो


#बेढँगा_कलमकार 

✍ इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.)

हाय_रे_इश्क़ 3.0

कई लम्हों से अकेले हैं

आज कोई आवाज लगाई है


आ कर मिल क्यूं नहीं लेते

इलाहाबाद मेरी मां भी आई है


ख़बर सुन दिल गद गद है

मन फूले न समाता 


बस फासले है 60 किमी की

नही तो दौड़ा चला आता 


जो बात अरसों से दफ़न किया 

वो बात तुमने एक पल में कह दिया


रोज़ रोज़ का बात छोड़

सीधा शादी का बात कर लिया


अजीब चाहत है गजब का नशा

दिल खुश है बस घर वाले खफा 


कहती हो घर वालों को मना लो फिर क्या

कोई अड़चन नहीं होगी, पूरी लाइन सफा


#बेढँगा_कलमकार 

✍ इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.)

चले आओ गांव से शहर ।। इलाहाबाद बुलाती है

किसी की याद बुलाती है 

दिले आवाज बुलाती है


कि चले आओ गांव से शहर

इलाहाबाद बुलाती है


मेरा मन माने ना 

दिल तेरे बिन लागे ना 


कब तक रहोगे गांव में

अब इलाहाबाद चले आओ ना


आखों में उतर आओ तुम

ख्वाबों में चले आओ तुम


बड़े दिन हो गए गांव में

अब शहर चले आओ तुम


एक दिल है जो रोज रोता है

याद में, प्यार में, इंतजार में


भूल क्यूं गए हो शहर भला

पहर भर के लिए नजर आओ तुम


#बेढँगा_कलमकार 

✍ इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.)

शनिवार, 23 अप्रैल 2022

मरम्मत कराया है कई बार दिल का ।। चोट खाये हम भी है

हाल ए दिल बताएं कैसे 

गुजारे हम भी अकेले हैं


मरम्मत कराया है कई बार दिल का

चोट खाये हम भी है


बात मसलन दिल की थी 

नही तो समझौता कर लेते


गुजार लेते जिंदगी अकेले भी 

पर लत लग गई थी उनकी


पूछता है कोई 

मेरे न होने का एहसास होता है क्या 


एहसास छोड़ ये भी पूछते तो अच्छा होता

कि तेरा हाल है क्या


रिश्ते छोड़ झगड़े गिनाने में अमादे हैं वे 

अच्छाई छोड़ खामियां गिनाने में अमादे हैं वे 


उनको कहा खबर है कई वर्ष घर पर नही 

सड़क पर गुजारे हैं मैंने


#बेढँगा_कलमकार 

✍ इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.)

शनिवार, 16 अप्रैल 2022

इस बाण का इलाज़ मात्र तेरा मुस्कुराना है

कब तक छुपाओ गे

कभी तो खुल कर आओगे


हमे पता है मोहब्बत है तुझे 

आज नही तो कल बताओं गे


हम भी देखेंगे 

कब तक सफ़र में अकेले चलोगी 


कभी तो ठोकर लगेगी 

मुझे सम्हालने के लिए


बात भले नही करती हो मुझसे 

पर मेरा हाल दूसरों से पूछा करती हो


खबर मुझे भी है कि मोहब्बत तुझे भी है

इस बात से इंकार भले तुम किया करती हो


तेरा मुस्कुराना गजब का इशारा है 

नजरों से बाण चलाना गजब का निशाना है 


बाण सीधा दिल पर जाकर लगा है

इस बाण का इलाज़ मात्र तेरा मुस्कुराना है


#बेढँगा_कलमकार 

✍ इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.)

शुक्रवार, 15 अप्रैल 2022

इतने भोले भाले हो किसी की नजर लग जाएगी

करे जो बात दिल से तो मोहब्बत हो जाएगी 

नफरत भरी लहजे में बात किया करो


गुजरते हो उसके घर वाली गली से 

दिख जाए कभी तो नजरे छिपा लिया करो 


कोई मौका नहीं छोड़ता दिल तोड़ने में

कोई तुमसे भी ख़ूबसुरत मिला तो छोड़ जाएगी 


मालूम है असलियत फिर भी इतना एहतराम क्यूं

विषकन्या है डंस लेगी डंसा है विष छोड़ जाएगी 


संजोए हो जो मोहब्बत इतनी 

छोड़ी जो मोहब्बत से नफ़रत हो जाएगी


बचा के रखो खुद को दुनियां के नजर से 

इतने भोले भाले हो किसी की नजर लग जाएगी


#बेढँगा_कलमकार 

✍ इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.)

साहस-ए-बैरी

कोई कत्ल करने पर उतारू हैं

मेरे रक्त का पीपासु है 


देखा नही जाता मेरी बरकत

मेरा घर जलाने पर उतारू है


रेश में नज़र नही आता 

सोच बदलना नही चाहता


बड़ी ऊंची ख्वाईश रखता है खुद

पर दूसरों के घर देखा नही जाता 


कमी नहीं है उसे भी किसी चीज़ की 

कमी है तो मात्र एक सद्बुद्धि की 


दुखी नही हैं स्वयं के दुख से 

दूसरो के सुख से दुखी नजर आता


हाल ए है दिले जिंदगी 

कोई कब तक आगोश में बैठेगा


दूसरो के जुल्म सहेगा सदा

ख़ुद कब तक ख़ामोश बैठेगा


#बेढँगा_कलमकार 

✍ इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.)

कोई चेहरा याद करके रोता है ।। कई भूले बिसरे पल सब जाग पड़ता है

जब कभी शायरी की एक लाइन नही बनती 

तब दिल को और जलाना पड़ता है


मोहब्बत को याद कर करके 

आंखो से आंसू बहाना पड़ता है


याद याद जब आ जाए याद भारी पड़ता है

दिल आखों के नमी से पसीझ उठता है


बड़ी मुश्किल होता है समझाना 

जब भी दिल रो पड़ता है


आंख की आसूं कलम की रफ्तार होती है 

खाली दिखती पर भरी दुकान होती है


कभी कभी पढ़ना मुश्किल पड़ता है

सामने खुली भले क़िताब होती है


पन्ने के प्रत्येक शायरी में चेहरा स्पष्ट होता है

सोचना नही पड़ता सब याद होता है


करुणा लिखना आसान नहीं

भीगे शब्द से नम पन्ना जान पड़ता है


कोई चेहरा याद करके रोता है

कई भूले बिसरे पल सब जाग पड़ता है


#बेढँगा_कलमकार 

✍ इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.)

गुरुवार, 14 अप्रैल 2022

मेरे सनम

कोई गुस्से में भी मुस्कुराता है

कोई चेहरा है बहुत भाता है


कितना करीब है समझ नहीं आता

नफरत करता हैं फिर भी मनाता है


दिल की सुकून है वो

किसी हवेली की जुनून है वो


वक्त नही हैं मोहब्बते एहतराम का

कसम से बड़ा मसरूफ है वो


उम्मीदे हैं उससे बहुत

हाल-ए-दिल सुनाना है


जुगनू हैं मेरे दिल का 

मोहब्बत का दीप जलाना है


फकत कोई वक्त निकाल लो 

मेरे लिए

सनम जी रही हूं सिर्फ तेरे लिए


मेरी आखें तरस जाती हैं 

सुकून-ए-दिल के लिए


नाराज़ क्यूं होते हो

आ जाओ शहर मिलने के लिए


#बेढँगा_कलमकार 

✍ इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.)

मंगलवार, 12 अप्रैल 2022

इश्क़ का बादल

तन्हाई में गुजर रहे हैं

सावन वर्षों से नही बरस रहे हैं


कभी घटा बन उड़ आओ

मेरा गांव वर्षों से तरस रहे हैं


साड़ी तेरी उपवन की छटा

बरस जाओ घनघोर घटा


आंखे हो गई है मरुस्थल

जरुरत है आसुओं की प्रिया


पल पल भर में बरसती थी

आज़ कई वर्षों से न बरसी


एक और आखरी आश थी 

भुल क्यूं गई मेरे गांव की गली


तेरा आना पहर भर कभी 

कोई नदी की लहर सा था 


रुठे हो क्यूं बताओं तो सही 

किनारा तेरा अधर सा था


कोई था उतरता तलब में तेरी 

मन भर जाता अधर देख तेरी


गांव की थी तू नदी अकेली 

कैसे अब प्यास बुझेगी अलबेली


भूख नही प्यास बुझती नही 

खेल कोई थी हुई जादुई


बयार चीखती हुई पूर्व की

बरस जाओ सावन की सखी


#बेढँगा_कलमकार

✍ इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.)

रविवार, 10 अप्रैल 2022

शायरी 2.0

1.


वफा की आग में सुलग रहा था वो

कुछ भी कहने से, डर रहा था वो 


हम तो बस देखकर, खफा थे उसको

कि दिल लगा कर, कितना रो रहा था वो ।।


2.


मोहब्बत से आजाद घूमना चाहता हूं

दर किनार कर दिया जो उसे भूल जाना चाहता हूं


महफिलों की ख्वाइश नहीं रही अब

बेशक एक अच्छा इंसान बनना चाहता हूं अब ।।


3.


चांदनी रात में, चांद नज़र आता है

ख़्वाब में, उनका ख़्वाब नज़र आता है


शिकायत है की वो दूर क्यूं रहते हैं 

बचपन का प्यार, आज़ भी याद आता है ।।


4.


किसी के वफा के लिए, बेवफा होना भी इश्क है

शहर में सादगी सा, रहना भी इश्क है 


खफा हो गए जो हमसे , खफा होने दो 

अपना तो वक्त के साथ, वक्त पर बदलना भी इश्क है ।।


5.


रूप की खजाना हो तुम

कसम से बेगाना हो तुम


पता नहीं किसकी बदुआ लगी 

इश्क नही कलम का दीवाना हूं अब ।।


6.


भूल कहां हुई , 

किसी को पता है क्या

अरे वो छोड़ कर जा रही हैं शहर


बहुत दुखी हैं, आखों में नमी है 

जाकर कोई रोकता क्यूं नहीं है।।


#बेढँगा_कलमकार

✍ इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.)

शायरी 1.0

1.


हम भी इतने खुद्दार न हुए होते

गर वो मोहब्बत कर लिए होते 


शादी कर दो बच्चे पैदा कर 

हम भी परिवार नियोजन कर लिए होते।।


2.


मैं पागलों सा भटकता रहा रात भर 

न जाने किस शहर में रहने लगी थी आज कल


आहट से पहचान लिया करती थी जो कभी 

वो देखने से भी कतराती हैं आज कल ।।


3.


कितना भी छिपाओ बात बता जाता है

शक्ल दिल का हाल बता जाता है


सारी हरकत है इन उंगलियों का 

नफ़रत भी लिखूं प्यार लिखा जाता है ।।


4.


जिंदा रहना था जिनके दिल में

वो ख़्वाब देखते हैं गैरों के 


इश्क न होता जो न उनसे

हम भी ख़्वाब सजाते औरों के ।।


5.


जितनी जिंदगी जीए हैं अकेले ही जीए हैं

उनकी मोहब्बत ने तो कुछ दिया ही नहीं


जबरदस्ती हक जताते है वे हम पर

इस तन्हाई की एक भी दवा काम किया ही नहीं ।।


#बेढँगा_कलमकार

✍ इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.)

कहानी थी बेबसी की ।। एक लड़का एक रेवती की

कहानी थी बेबसी की 

एक लड़का एक रेवती की 


इश्क में खो चुके थे इतने 

बेखबर थे हर परेशानी की 


दास्तां है मौन कमरे की 

बंद खिड़की की कवाड़ी की 


शख्स ने अवरुद्ध कराया है

खुश जिंदगी की रवानी की 


अंजान मोड़ जिंदगी की 

बेखौफ शहर दीवानी की 


मुमताज थी अली की 

भौरों को खबर थी कली की 


प्रेम लीला गुल फुलवारी की

नव पल्लव संस्कारी की 


कहानी थी बेबसी की  

एक लड़का एक रेवती की


#बेढँगा_कलमकार

✍ इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.)

शनिवार, 9 अप्रैल 2022

हाय_रे_इश्क 2.0

मोहब्बत के लिए तरस गया था वो

शहर की गलियों में 

अपना महबूब खोजा करता था वो


बड़ी दुःख भरी कहानी है उसकी 

सुबह शाम रोया करता था वो


जब कोई लड़की गुजरती थी रास्ते से

नींद खुल जाती थी उसकी आहट से


शाम को बैठ पुल पे याद में उसके

बेशुमार रम पिया करता था वो


भरोसा था उसे, उसके लौट आने का 

खबर मिलती नही कोई अखबार से 


जग रात भर, चल सड़क पर वो

सबके नजर में निशाचर हो गया था वो


हया समझ इंतजार करता था वो

मुस्कुरा टाल दिया करता था वो


जख्म समेटे इतना तनहाई का 

सबके नजरों में खुद बेहया हो गया था वो


#बेढँगा_कलमकार

✍ इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.)

शुक्रवार, 8 अप्रैल 2022

भौंरे भी तलाश सकते हैं, इलाका फूलों का

इल्जाम था, कातिल होने का, हम पे

कुछ नहीं, बस यही, समझा रहा था उनसे 


कैसे कहूं कि, तुम ख्वाइश हो मेरी

जेल जा रहा हूं अभी, यही बतला रहा था उनसे


जिंदगी भर साथ निभाने को, कह रही थी मुझसे 

रात के ख़्वाब में, उम्मीद उमड़ रही थी उनके 


अभी हवालात का, हवा खा कर ही आया था 

उम्मीद कुछ ज्यादा नही, कर रही थी मुझसे


परोल पर आया था, डर फिर था जाने का

इंतजार करती आरक्षी, कोर्ट के इशारे का


पर भरोसा था उनके, साथ निभाने का 

भले खबर नहीं था, उनके छोड़ जाने का


शक बेशक था, उनके रुख करने का 

पकड़ ली थी हाथ, छोड़ मुझे, गैरों का 


अरे कोई ख़बर, जाओ, दे आओ उन्हे भी

भौंरे भी तलाश सकते हैं, इलाका फूलों का


#बेढँगा_कलमकार

✍ इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.)

गुरुवार, 7 अप्रैल 2022

हाय_रे_इश्क़

बात कुछ नही मोहब्बत का था 

कुछ बोला नहीं गुनगुना कर चला गया 


रात काली रही पूरी रात भर

जब तक सुबह का सूरज नही आ गया ।।


जुबान लड़ खड़ाई

और कुछ बोल नहीं पाया 


वो शर्मा कर चली गई

दिल का राज़ घोल नहीं पाया


उनकी अदा मुझे भा गई

मैं शांत देखता रहा, वों सब कुछ बड़ बड़ा गईं 


कमबख्त इश्क ही रहा होगा 

तभी उनकी गालियां भी पसंद आ गई ।।


#बेढँगा_कलमकार 

✍ इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.)

बुधवार, 6 अप्रैल 2022

भेजी थी खत जो, उसका जवाब न मिला था ।। अब उम्र भी, धीरे धीरे ढलती जा रही थी

वक्त वक्त की बात है, कोई मरता था इतना 

शहर छोड़ मिलने आता था, गांव मेरे  


मेरे जख्मों पर, खुद के आंखों में, आसूं पिरोता 

एक ऐसा खूबसूरत सा, गांव में, चांद था मेरे


निगाहें कुछ कह न पाती, इतना लुट गए थे हम 

दिल का जुड़ना मुश्किल, इतना टूट गए थे हम


फिर भी एक शख्स, याद आज भी आता है

उनकी मोहब्बत में, इतना गिरफ्त हो गए थे हम


लगी थी आग दिल में, लपटे दूर दूर तक जा रही थी

उन्हें खोने का ऐहसास, बार बार सता रही थी


भेजी थी खत जो, उसका जवाब न मिला था

अब उम्र भी, धीरे धीरे ढलती जा रही थी ।।


#बेढँगा_कलमकार 

✍ इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.)

सोमवार, 4 अप्रैल 2022

मोहब्बत की पहली, ख्वाइश हो तुम ।। यूं छोड़ देंगे, थोड़े नुमाइश हो तुम

मोहब्बत की पहली, ख्वाइश हो तुम

यूं छोड़ देंगे, थोड़े नुमाइश हो तुम


मेरे जर्रे जर्रे में बसी हो 

सीप की मोती, गोता का शाही हो तुम


दुआ का असर है, चाहत का चाह हो तुम

बेगुनाह की गवाही, शाह की साख हो तुम


आसमा से उतर कर आई 

मांगी दुआ की, फ़रियाद हो तुम


कलम लिख न पाई, इतनी ख़ास हो तुम

सरकंडे की स्याही, कलम की दवात हो तुम


अविरल बहने वाली धारा 

पथिक की प्यास, थकन में स्वास हो तुम


गंगा की रेत, आगरा की ताज हो तुम

झूठ की पर्दा, इंसाफ़ की विश्वास हो तुम


गुल की खुशबू, भौरे की प्यास हो 

कांटों बीच पली, एक ऐसी गुलाब हो तुम


#बेढँगा_कलमकार 

✍ इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.)

न जाने कब क्षण आएगा ।। इंतजार में पागल बैठा है

भूला भटका सा लगता है 

आश लगाए बैठा है

न जाने कब क्षण आएगा 

इंतजार में पागल बैठा है


भीगे हैं पलकें, सूखे होठ उसके 

होंगे गीले, सूखेंगे क्या पलकें

कब गुजरेगा, निरस पतझड़

सुनने को व्याकुल, कूकेगी क्या कोयल


आयेगी राधा, क्या सुन बासुरी 

वक्त बहुत बीत गया है, बोल सूदन 

प्रेम रंगत, निखरते नही हैं

घड़ा भ्रम का, फूटेगा क्या सूदन


शब्द आखरी है, खत आखरी है

मेरी कलम, मेरे कल आखरी है

कूच कर जाएगी, कल चादर

लिपटे जो चादर में, चादर तू आखरी है


भूला भटका सा लगता है 

आश लगाए बैठा है

न जाने कब क्षण आएगा 

इंतजार में पागल बैठा है ।।


#बेढँगा_कलमकार 

✍ इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.)

हर तरफ़ अंधेरा है, उजाला कौन ले गया ।। बताओं भला, मेरा दीवाना कौन ले गया

हर तरफ़ अंधेरा है, उजाला कौन ले गया 

भूख लगी है, मेरा निवाला कौन ले गया

ढूढने निकला हूं, भटक रहा हूं दर बदर

बताओं भला, मेरा दीवाना कौन ले गया


गलत हो गया है, कहना किसी से 

जिक्र किसी का, करना किसी से

लूट ले जा रहे हैं, शहर को मेरे 

फूल , कली, मधुकर कही के


सोच समझ कर हैरान है दिल 

पागल मजबूर परेशान है दिल

नाजुक है सम्हाले न सम्हाले

सबके नज़र में बदनामा है दिल


अतुरो के भेट चढ़ गया है वो

रहकर शहर में बदल गया है वो

सुन कर भी कर देता है अनसुनी

कुछ अजीब सा हरकत करने लगा है वो


आसुओं को सम्हालने की आदत हो गई 

गजब है, अब वो रोना भुल गई

कल तलक जो नही रह पाता था, बिन उसके 

अब उसे अकेले जीने की आदत हो गई ।।


#बेढँगा_कलमकार 

✍ इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.)

शनिवार, 2 अप्रैल 2022

अजीब मोहब्बत है।। हर सफ़र में नज़र, आ जाती हो तुम

ये लगन कैसी लगा दी हो तुम

भुल जाता हूं फिर भी

देखते ही, याद आ जाती हो तुम 


तेरे हाथों के कंगन चूड़ियां सुनाई देती है

अजीब मोहब्बत है 

हर सफ़र में नज़र, आ जाती हो तुम


नदी का किनारा, घाट हो तुम

नाव खेवयिया, बादल की बरसात हो तुम


झरने की तरह, कलकल आवाज़ हो तुम

अजीब मोहब्बत है

हर सफ़र में नज़र, आ जाती हो तुम


भुवन चन्द्र चांदनी, रात सा हो तुम

गजनी की दिमाक, सा हो तुम

भुल जाउ फिर भी, याद आ जाती हो तुम 


दर दरिया दिल की, मिशाल हो तुम

अजीब मोहब्बत है

हर सफ़र में नज़र, आ जाती हो तुम 


मेरे घर की आलीशान, दीवार हो तुम

दिल छू लेने वाली 

खबर की, अखबार हो तुम


मेरे नजरों से, टकराने वाली तकरार हो तुम

अजीब मोहब्बत है

हर सफ़र में नज़र, जाती हो तुम 


गंभीर शब्द, तीक्ष्ण बाणों सा

आघात हो तुम

बागो की वादी, वीणा की सुरीली

तान हो तुम

हर मनु को शब्द विहीन कर दो


जीती बाजी की, ऐसी तास हो तुम

अजीब मोहब्बत है

हर सफ़र में नज़र, आ जाती हो तुम


पूरी लिख दूं, तुम्हे कैसे 

बिहारी की गहराई, दोहे की शान हो तुम

मां पिता की प्रेम, भाई बहन की स्नेह हो तुम


मेरे रुप की रंगत, चेहरे की मुस्कान हो तुम

अजीब मोहब्बत है

हर सफ़र में नज़र, आ जाती हो तुम ।।


#बेढँगा_कलमकार 

✍ इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.)

आज कड़क गर्मी है, सड़क मरते बहुत ।। फिर भी जोगी की शिमला नजर आती नही

मीनार ढह रहा है, फिर भी अकड़ जाती नही 

मछली की तड़प, तड़प नजर आती नही 

आज कड़क गर्मी है, सड़क मरते बहुत

फिर भी जोगी की शिमला नजर आती नही


भीड़ बोलते बहुत थे, शहर सन्नाटा पसरा था

कई जर्जर महल थे, उनको कहा पता था 

शेर की तरह दहाड़, अजीब सा रहे थे

पता था हमे भी, फेंकते हैं, फेंक ही रहे थे


तकलीफ़ हैं तुम्हे , हा मुझे भी 

खोखले थे, खोखले ही, रहेंगे भी 

गरज गरज कर आवाज बस करेंगे 

ये वो बादल नही है जो बरसात करेंगे 


आदतें गुंहेगार की, नाटक नाटककार की 

मूंगफली तोड़ें हैं, आदतें फोड़ फाड़ की 

बनाए कुछ नही, लुटना लुटाना हर बार की 

बस फेकेंगे, फेंकना काम ही है, इनका हर बार की


गलतियां हुई हैं, शहर रोशन की तरह 

नौकरी है नही, काहे मरे प्रमोशन की तरह

बोलता है, हकलाता तो बिल्कुल नही 

नफ़रत है बस उनको, पड़ोसन की तरह


बीत बातों को खोल, काम करता है 

अजीब मेहमान है, बड़ी खबर में रहता है 

एक तो बिन बुलाए, कही भी चला जाता है  

दूसरा केवल व केवल, शराफत की बात करता है


ख्वायिस नही थी, कुछ भी कहने की 

दिख रहा था, जरुरत भी नहीं थी, लिखने की 

बर्दाश करूं भी तो कैसे  

जब किसी की आदत ही हो, बस फेंकने की ।।


#बेढँगा_कलमकार 

✍ इन्द्र कुमार (इ.वि.वि.)

थी आवाज भर, जो कभी सुकून

सजीव तस्वीर, वो नज़र, काजल, बिंदियां  कमाल की थी मुस्कुराता चेहरा, छिपी उसमें गुनेहगार भी थी दी थी जख्म, दर्द नहीं  कराह थी, शिथिल पड़े  एहस...